कारोबारी मनीष गुप्ता जैसे निर्दोष लोगों का क़त्ल पहले भी होता रहा है और आगे भी होता रहेगा..

एक नज़र इधर प्रमुख समाचार सोशल मीडिया से
  1. न तो यह पहला क़त्ल है और न आख़िरी। यह होता आया है और होता रहेगा।
  2. होता इसलिए रहेगा क्योंकि इस वारदात में दुनिया ने बहुत साफ तरीके से ये देखा कि पुलिस- प्रशासन का सारा सिस्टम शुरू से ही कातिलों के पक्ष में और पीड़ितों के खिलाफ जम कर मुखर और सक्रिय था। एसएसपी वही कहानी सुना रहे थे जो क़ातिल इंस्पेक्टर ने लिखी थी।
  3. होता इसलिए भी रहेगा क्योंकि ऐसे क़ातिलों को सजा देने में शासन प्रशासन की दिलचस्पी तभी जागती है जब बदनामी की आंच बहुत बढ़ जाती है। ऐसा एक लाख मामलों (जी एक लाख) में एक बार होता है। प्रदेश में तकरीबन हर जिले में 99,999 पुलिसिया उत्पीड़न और बर्बरता के मामले तो अखबारों की रुचि का विषय नहीं बन पाते। पीड़ित पैसा देने, पिटने या जुल्म सहने को अभिशप्त होते हैं। इसमे निरीह जनता से लेकर ताकतवर व्यापारी और रसूखदार लोग सब शामिल हैं। कोई बरी नहीं।
  4. होता इसलिए भी रहेगा क्योंकि हर मामले में गुहार लगाने वाली मीनाक्षी गुप्ता नहीं होती जो घण्टों तक डीएम और एसएसपी की लीपापोती की गुहार-धमकियां झेलती रही पर डिगी नहीं।
  5. होगा इसलिए भी क्योंकि जगत नारायण जैसों के पैरोकार उसके पक्ष में ईमानदारी से लगे रहेंगे। बेलघाट और बांसगांव में उसके द्वारा की गई हत्याओं को जैसे मैनेज किया ,आगे भी करते रहेंगे।
  6. यह सिलसिला इसलिए भी जारी रहेगा क्योंकि इसके खिलाफ मुखरता से सड़क पर लड़ने कोई जनप्रतिनिधि नहीं उतरा। वे आपको हर जगह दिखेंगे। भ्रष्ट इंजीनियर का तबादला रुकवाते हुए, भ्रष्ट पुलिसियों को बचाते हुए पर आपकी किसी परेशानी पर कतई नही दिखेंगे।विपक्षियों को जबरन निकलने नहीं दिया गया।
  7. यह इसलिए भी नहीं रुकेगा क्योंकि हम सबने अपनी आत्माएं बेच दी हैं। कभी जाति के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर बनी अपनी सरकारों के खिलाफ सही मुद्दे पर बोलना भी हमें अपराध लगता है। मीनाक्षी गुप्ता के समर्थन में आंसू बहाने वाले खुशी दुबे पर चुप रहते हैं। किसी पीड़ित के दुख पर , किसी आदमी को प्रताड़ित होते देख कर, जबरन जेल में ठूंस दिए गए लोगों को देखकर, खुलेआम प्रशासन और पुलिस की सीनाजोरी देखकर, दिन भर खुद अपने साथ होती नाजायज जबर्दस्तियों को देखकर भी हम चुप हैं। हमारा बोल देना, सहानुभूति में रो देना कहीं मोदी जी, योगी जी, ठाकरे जी, अखिलेश जी या किसी और जी के खिलाफ चला गया तो?क्या मुंह दिखाएंगे तब?
    पूरा सिस्टम सड़ चुका है। वेलफेयर स्टेट की अवधारणा का फेयरवेल हो चुका है। 10 दिसंबर को हर साल मानवाधिकार दिवस मनाने वाले या अपनी कार/बाइक पर नेशनल और इंटरनेशनल ह्यूमन राइट दुकानों का बोर्ड लगाकर चलने वाले किसी धंधेबाज ने इस मसले पर कोई बयान नहीं दिया है और अखबार वालों ने भी उनसे पूछने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
    हर जगह भैंस लाठी वाले के कब्जे में है। पीछे सत्ता, नेता, अफसर सब हाथ बांधे खड़े हैं। इस हालात को अकेले बदल सकने की ताकत रखने वाले अखबार भी अब सच देखना, बोलना, कहना नहीं चाहते क्योंकि रिपोर्टरों और संपादकों के लिए ऐसा करना अब सम्भव नहीं रहा।

( गोरखपुर के लेखक-पत्रकार कुमार हर्ष के एफबी वॉल से साभार )

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