हम लोग जब छात्र थे, तब भी RSS-BJP से जुड़े छात्र संगठन Abvp की कम से कम हमारे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कोई अच्छी छवि नहीं थी। वे नारे तो ‘ज्ञान, शील, एकता: परिषद की विशेषता’ का लगाते थे। पर उनके ज्यादातर नेताओं (भाई रामाधीन सिंह और कुछेक और को छोड़कर, जो बाद में संघ संगठन से अलग भी हो गये) में ज्ञान और शील का सख्त अभाव दिखता था। यूपी, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में इस संगठन की कुख्याति कुछ ज्यादा रही। कुछ साल पहले, मध्य प्रदेश में तो कैंपस के अंदर ही एक प्रोफेसर की हत्या कर दी गई। इन दिनों तो इस संगठन का हाल बहुत बुरा दिख रहा है। संघ-भाजपा आज शासक समूह हैं। ऐसे में उन्हें अपने छात्र संगठन में बढ़ते लंपटीकरण, अपराधीकरण और गिरोहबाजी पर चिंतित होना चाहिए। इन प्रवृत्तियों की बढ़ोतरी पर ABVP की पीठ थपथपाने के बजाय सुधार की कोशिश करनी चाहिए। रामजस कालेज के छात्रों, शिक्षकों और यहां तक कि पत्रकारों पर हिंसक हमले के बाद भी इस संगठन ने हिंसा का सिलसिला जारी रखा है। अभी मंगलवार को भी वामपंथी लोकतांत्रिक छात्रों के प्रदर्शन से लौटते JNU के दो छात्रों पर खालसा कॉलेज के पास हमला किया गया। पुलिस के मुताबिक इस मामले में उसने ABVP के दो कार्यकर्ताओं( कहां से इन्हें कार्यकर्ता कहा जाय!)को हिरासत में लिया गया है। इस तरह के तथ्यों के सामने आने के बावजूद सत्ताधारी संघ शक्ति अपने संगठन की वाहवाही कर रही है। इरादा क्या है? हिंसक हमलों के लिए गिरोह बनाने का तो नहीं? ऐसा मत कीजिए, छात्रों को छात्र ही बने रहने दीजिए!
(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल के एफबी वॉल से.)