प्रेम और युद्ध में सब उचित है. युद्ध प्रत्यक्ष हो या अप्रतयक्ष. युद्ध यथार्थ हो या छद्म. आज के इस युद्ध में सब उचित है.
मै आश्चर्य चकित हूँ कि कैसे १०० करोड़ रूपए की कथित फिरौती लेने वाले एक संपादक एक पक्ष के लिए अचानक देशभक्त भगत सिंह हो गये. और कैसे नीरा राडिया की सहयोगी एक सम्पादक अचानक सत्यनिष्ठ सरोजिनी नायडू हो गयी. कोई भगत सिंह हो रहा है कोई सरोजिनी नायडू. विचारधारा के इस छद्म युद्ध में ये छद्म नायक-नायिका गढ़े जाने का दौर है. ये दाग धोने का दौर है.
आप भी धो लीजिये. कन्हैया को नायक कह कर. या खलनायक कह कर.
दोनों स्थितयों में दाग धुल जायेंगे. बस पक्ष लीजिये. क्यूंकि पक्षपात का दौर है.
जी हाँ, अभी तक पक्ष नही लिया तो जल्दी से कोई पक्ष लीजिये …अगर आप तटस्थ रहे, तो उन्माद के इस ज्वार में कहीं खो जायेंगे.
(वरिष्ठ खोजी पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से.)