यूक्रेन डायरी : जब भारत का नाम सुनते ही हट गईं सामने तनी हुई राइफलें..

एक नज़र इधर प्रमुख समाचार सोशल मीडिया से

यूक्रेन की राजधानी कीव चारों तरफ से घिर चुकी है। मैं कीव के जिस होटल में हूँ, उसे पिछले 36 घंटों से लॉक कर दिया गया है। होटल की छठी मंज़िल पर कमरा है। कमरे की खिड़की सिर्फ दो वजहों से खुलती है। पहला जब खतरे का सायरन बजता है और दूसरा जब सड़क पर दौड़ते टैंकों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है। इन दोनो ही मौक़ों पर खिड़की खोलना कोई जरूरी नही है मगर भीतर बैठे पत्रकार की उत्सुकता मजबूर कर देती है। युद्ध अजीब से अहसास देता है। कुछ नए अहसास पैदा होते हैं तो कुछ मर जाते हैं। मसलन अब गोलियों की तड़तड़ाहट और बमों के धमाकों पर हैरानी नही होती। ये आवाज़ें इतनी आम हो चली हैं कि लगता है मानो जीवन जीने के प्रोटोकॉल का हिस्सा हों। 36 घंटे पहले इस कीव की सड़कों पर निकला था। पैदल ही क्योंकि टैक्सियाँ बंद हैं और अब तो मेट्रो भी बंद हो चुकी है। रास्ते में जगह जगह यूक्रेन की सेना के साथ साथ क्लाशनिकोव राइफ़ल सँभाले आम नागरिक दिख रहे थे। वे हर आने जाने वाले से पूछताछ कर रहे थे। मुझे करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित कीव की बोगोमेलट्स नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के हॉस्टल तक पहुँचना था जहां करीब 500 भारतीय छात्र फंसे हुए थे।
मुझे विदेशों में ऐसे एक नही अनेक मौके मिलते हैं जब अपनी मातृभूमि पर गर्व होता है। यही उस वक्त हुआ जब मैं हॉस्टल में इन विद्यार्थियों से मिलकर और इनकी रिपोर्ट दिखाकर लौट रहा था। रास्ते में तीन यूक्रेनी नागरिकों ने रोक लिया। सबके हाथों में क्लाशिनकोव राइफलें थीं। वे यूक्रेनियन भाषा में कुछ बोल रहे थे। मेरे समझ से परे थे। पर इतना ज़रूर समझ आ रहा था कि ये मेरा परिचय पूछ रहे हैं। थोड़ी दूर आगे निगाह गई तो एक चौथा नागरिक दिखाई दिया जिसने कुछ दूरी से हम पर राइफ़ल तान रखी थी। मैं यूक्रेनी भाषा में पूछे जा रहे उनके हर सवाल के जवाब में बस ‘इंडिया-इंडिया’ बोले जा रहा था। ये शब्द सुनते ही उनके चेहरे नरम पड़ते जा रहे थे। इस बीच वो चौथा जिसने कुछ दूरी से राइफ़ल तान रखी थी, हमारे नजदीक आया, हमसे हाथ मिलाया और जाने का इशारा किया। ये सिर्फ इंडिया का चमत्कार था। मैं भारत से था और यही मेरी पूँजी थी जिसने मुझे सुरक्षित निकाल दिया।
रुस की सेनाएँ अब इस शहर से केवल 20 किलोमीटर की दूरी पर हैं। उन्होंने चारों तरफ से इस शहर को घेरा हुआ है। युद्ध मुझे कभी कभी अध्यापक की तरह लगता है। कितनी नई नई बातें सिखाता है। जीने के कितने नए आयाम समझाता है। मसलन दो छोटी पानी की बोतलें इस समय अमृत हो चली हैं। होटल में पानी का स्टॉक लिमिटेड है। ये दो छोटी पानी की बोतलें ही पूरा दिन का कोटा हैं। जब भी प्यास ज़ोर मारती है, हम और चेतन दोनो एक एक घूँट गला तर कर लेते हैं। बड़ी बात है कि अब इससे कोई दिक्कत नही होती। किसी कमी का भी अहसास नही होता है। जीवन अद्बुत होता है। आप जिस स्थिति में ढालो, उसी में ढल जाता है। अब इस एक घूंट पानी की बूँद से ज्यादा तृप्ति मिलती है। शायद पूरी बोतल पानी मिलता तो भी इतनी तृप्ति नही मिलती। होटल में अभी खाने का स्टाक है मगर सब मांसाहारी है। हम और चेतन दोनो ही शाकाहारी हैं। गनीमत रही कि दो दिन पहले एक स्टोर खुला मिला और वहां से हमने बिस्कुट, नमकीन, ड्राईफ्रूट वग़ैरह ले लिए थे। सो कट जा रहा है।
मुसीबत में किताबें बहुत बड़ा सहारा होती हैं। उनके होते हुए आप कभी अकेले नही होते। किताबों से दोस्ती बेहद पुरानी है। वे यहां भी साथ हैं। आचार्य श्रीराम शर्मा मेरे गुरू हैं। उनके दिए विचार ही मेरी ताकत हैं। वे लिख गए हैं- “अपने भाग्य को मनुष्य खुद बनाता है, ईश्वर नही।” फिर इतने शक्तिशाली मनुष्य को किस बात का डर हो? और क्यों हो ? सोवियत की इस ज़मीन ने एक से बढ़कर एक महान लेखक दिए हैं। टॉलस्टॉय, गोर्की और चेखव की कलम से तो बहुत पुराना याराना रहा है। इंटरनेट चल रहा है। सो खाली वक्त में उनसे बातें होती रहती हैं। मेरे सबसे प्रिय लेखक अज्ञेय अपनी कालजयी पुस्तक ‘शेखर एक जीवनी’ में लिख गए हैं- “अभिमान से भी बड़ा एक दर्द होता है, लेकिन दर्द से बड़ा एक विश्वास होता है।” यही विश्वास है जो एक पल के लिए भी हिम्मत नही टूटने देता। अब पहले से ज्यादा आशावादी हो चला हूँ। जीवन का नकारात्मक पक्ष पहले से कहीं अधिक कमज़ोर हुआ है। मुझे इस युद्ध ने पहले से कहीं अधिक समृद्ध बनाया है।
मेरे मोबाइल के व्हाट्सअप में यहां फँसे विद्यार्थियों और उनके माता-पिता के संदेश भरे पड़े हैं। रह रहकर मोबाइल की घंटी बजती है। कोई न कोई फोन कर अपने बच्चों के लिए मदद माँगता है। कुछ मुझ पर ही आक्रोशित हो जाते हैं। “आप कुछ कीजिए। आप किसलिए हैं यहां?” ये भावनाओं का सैलाब है। हर कोई बुरी तरह परेशान हैं। इस तरह के इमोशनल बैकलैश बड़े स्वाभाविक से हैं। मैं ऐसी तमाम शिकायतों को विदेश मंत्रालय के अधिकारियों तक पहुंचा रहा हूँ। मंत्रालय को टैग करके ट्वीट भी कर रहा हूँ। ये बेहतर हुआ है कि सरकार ने अपने मंत्रियों को पोलैंड, रोमानिया और हंगरी के बार्डर पर भेजने का फैसला किया है। इससे Evacuation और तेज हो सकेगा। कोआर्डिनेशन में अधिक मदद मिलेगी।
ये युद्ध भी खत्म होगा। दुनिया ने इससे भी बड़े और विकराल युद्ध देखे हैं। जीवन अजेय होता है। वो किसी भी युद्ध के आगे झुकता नही है। बल्कि हर युद्ध से विजयी होकर लौटता है। यही समय का सत्य है। पर हर सत्य को समय की कसौटी पर परीक्षा देनी होती है। ये वही समय है। ये समय भी बीत जाएगा।

( पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के एफबी वॉल से साभार )

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