पता नहीं, बीते कुछ दिनों से क्या हो गया है लोगों को? क्या देश की खातिर वे कुछ महीने रूपये के बगैर नहीं रह सकते, कुछ कम नहींं खा सकते, खाना नहीं बचा है तो आसपास के लोगों से मांग कर नहीं खा सकते, अगल-बगल, हर जगह राष्ट्रवादी देशभक्तों की मौजूदगी है, क्या लोग देश के लिेए इतना भी कष्ट नहीं उठा सकते, उऩके सहयोग के लिये हमारे स्वयंसेवक हर जगह मौजूद हैं? कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि बीते आठ दिनों के बीच देश भर में बैंक की लाइन में खड़े-खड़े या अस्पताल में या उसके रास्ते में धन के अभाव में कुछ लोग मर गये! कैसी राष्ट्र-विरोधी सोच है यह, हमारे जवान सरहद पर दुश्मन की गोलियों से शहीद हो रहे हैं, क्या 55 या कुछ और लोग देश की अर्थव्य़वस्था की मजबूती के लिये मर नहीं सकते? कुछ ही दिनों की तो बात है, अपना देश इतना सुखी, सम़ृद्ध और शानदार हो जायेगा कि आपने ऐसा सपना भी नहीं देखा रहा होगा! कालेधन, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी, सब खत्म हो जायेंगे, बल्कि ये सब हमारे ‘दुश्मन-देशों’ की तरफ भाग जायेंगे, हमारे यहां ‘रामराज्’ आ जायेगा! क्या आपको ‘रामराज’ में ‘राजतंत्र’ नजर आ रहा है, राम-राम कितनी राष्ट्र-द्रोही बात कर रहे हैं आप लोग? क्या आप यह कह रहे हैं कि देश के ज्यादातर बड़े अर्थशास्त्री नहीं मानते कि विमुद्रीकरण-नोटबंदी-नोटबदली(जो भी कहें!) से कालेधन पर निर्णायक अंकुश नहीं लगेगा, बिल्कुल बेकार की बात कर रहे हैं, ऐसे अर्थशास्त्री! ये लोग ‘देशद्रोही कैंपस’ jnu में पढ़े या पढ़ाते होंगे, क्या कह रहे हैं आप, इनमें कुछ दिल्ली स्कूल आफ इकोनामिक्स, हैैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स, आक्सफोर्ड-कैंब्रिज के पढ़े-पढ़ाये भी हैं? या तो ये सब ‘हरे’ या ‘लाल’ रंग में या फिर ‘विदेशी रंग’ में रंगे होंगे। हमारे स्वदेशी अर्थशास्त्रियों से पूछिये, खासकर जो नागपुर के प्रशिक्षित होंं। शिशु मंदिरों से पढ़े लोगों से संपर्क करें, जिनके पास मां ‘भारती’ का ‘संस्कार’ हो, वो सही-सही समझदारी देंगे। क्या कह रहे हैं, छोटे-मझोले उपक्रम, कारोबार बंद होने लगे हैें, उनके कर्मचारी-मजदूरों को नौकरी से बाहर किया जा रहा है? इससे ग्रोथ रेट नहीं गिरने देंगे हम! कुछ ही समय में व्याजदर कम होगी, तेजी से निवेश होगा, रोजगार सृजन होगा, चौतरफा सम़ृद्धि होगी और हम महाशक्ति बन जायेंगे। क्या कह रहे हैं, यह हमारा दिवास्वप्न है! आप तो सचमुच देशद्रोही नजर आ रहे हैं! क्या बोल रहे हैं, डालर के मुकाबले रूपया ध़़ड़ाम-झड़ाम गिर रहा है, परेशान मत होइय़े, माननीय ट्रम्प जी से कह कर सब ठीक करा लेंगे। उनकी जीत के लिये हमारे देशभक्त-राष्ट्रवादियों ने नागपुर से कानपुर तक न जाने कितने यज्ञ और हवन किये! अब क्या फरमा रहे हैं, शेयर बाजार कई दिनों से औंधे मुंह गि्रा पड़ा है! और क्या कह रहे हैें, देश स्तर पर हमारे मूल्यवान कार्यदिवस बर्बाद हो रहे हैं? क्या किसान बेहाल हैं, वहां बैंकों में रकम नहीं पहुंच पा रही है? अभी अपने स्वयंसेवकों को भिजवाता हूं। बैंक-शाखा सक्रिय नहीं तो क्या हुआ, वह शाखा लगा देंगे। क्या-क्या कह रहे हैं आप, इससे देश और जनता की बर्बादी हो रही है? आप जैसे लोग तनिक भी ‘देशभक्त’ और ‘राष्ट्रवादी’ नहीं हैं, क्या जनता और देश इस महान फैसले के पक्ष में, राष्ट्रवाद को मजबूत करने के लिये अपनी बर्बादी को तैयार नहीं हो सकते? शहादत से ही कोई राष्ट्र मजबूत बनता है, क्या देश इस ऐतिहासिक मुकाम पर ‘देशभक्ति’ और ‘राष्ट्रवाद’ के लिये अपनी ‘शहादत’ नहीं दे सकता? जय नोटबंदी-जय नोटबदली! जय-जय हो!
(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल के एफबी वॉल से.)