पूर्वांचल के एक मशहूर पत्रकार हैं शैलेश त्रिपाठी. लोग इन्हे मोबाइल बाबा के नाम से भी जानते हैं. कहने के लिए तो ये देश के बड़े-बड़े हिंदी अख़बारों में व्यंग्य लिखते हैं लेकिन इनका व्यंग्य हमेशा सच के इर्द-गिर्द ही होता है. फिलहाल शैलेश त्रिपाठी उर्फ मोबाइल बाबा ने अपने फेसबुक पेज पर एक पोस्ट लिखा है. इस पोस्ट में सिर्फ नाम काल्पनिक है और बाकी बातें शत-प्रतिशत सही हैं. हम यहां इनके पोस्ट को प्रकाशित कर रहे हैं. आपसे अनुरोध है कि एक बार इस पोस्ट को जरूर पढ़िये..
“एक रिटायर्ड अधिकारी हैं, बेहद कमाऊ विभाग में थे वो, कितनी सम्पत्ति है उनके पास शायद उनको भी नहीं पता होगा, बेहद प्रभावशाली व्यक्ति रहे, बहुत ऊंची पहुंच वाले, वैसे भी जिसके पास बहुत पैसे आ जाते हैं उसकी पहुंच ऊपर तक हो ही जाती है, नौकरी के दौरान उनकी मित्रता एक युवा आईएएस से हुई, जो बहुत आगे तक गया उसकी मदद से उन्होंने एक मेट्रो सिटी में एक बेहद बेशक़ीमती बहुत बड़ा प्लॉट बेहद सामान्य दर पर आवंटित करा लिया, इस बात का अन्दाज़ा इसी से लगाइए कि उस प्लाट के सटे वाले प्लाट पर बना बंगला एक उप राष्ट्रपति का है, आज के चार साल पहले इनके उस बंगले की कीमत 36 करोड़ थी, ऐसी-ऐसी अकूत सम्पदा है, इनकी पहुंच कितनी बड़ी थी वो इससे जानिए कि इन्हें अपने विभाग में प्रमोशन लेना था उसके लिए जिस डिग्री की आवश्यकता थी उसका इक्जाम ऑल इंडिया लेवल पर होता था और आज भी होता है, इन्होंने और इनके सिंडिकेट ने मिलकर 80-90 के दशक में उस एक्जाम का पेपर ही आउट करा लिया था और चौड़े से प्रमोशन लिया था, पूरे कार्यकाल के दौरान अकूत संपदा पैदा की इन्होंने, उस समय के एक बड़े राजनेता का पैसा भी यही लोग मैनेज करते थे, रिटायरमेंट के बाद भी खाली नहीं बैठे, वर्तमान के एक बेहद सफल और अकूत सम्पदा वाले एक सजातीय राजनेता का साथ मिला, उसके फंड का सपोर्ट मिला लिहाजा एक बहुत बड़ी संस्था चलाते हैं, उनकी संस्था में काम करते हैं केशव जी (काल्पनिक नाम पर व्यक्ति है) इसके अलावा दर्जनों और लोग भी काम करते हैं, जिनका वेतन 15 से ₹ बीस हजार तक है, मार्च की सैलरी तो इन लोगों को मिली, पर एप्रिल की सेलरी को लेकर टाल मटोल चल रहा था अब करीब करीब यह तय हो गया है कि एप्रिल की सैलरी नहीं मिलेगी, केशव बाबू की बेटी शहर के एक प्रतिष्ठित कन्वेंट स्कूल में पढ़ती है पिताजी नहीं है माता जी हैं जो बीमार रहती हैं जिनको शहर के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर को हर महीने दिखाना होता है, अब जबकि केशव बाबू को यह पता लग गया कि उन्हें सैलरी नहीं मिलेगी जो भी थोड़े बहुत पैसे उनके पास होंगे जिसकी उम्मीद नहीं के बराबर है उन पैसों से उनके सामने तीन विकल्प है पहला या तो वह और उनका परिवार खाना पीना छोड़ दें जो सम्भव नही है, दूसरा बच्ची का नाम कटा दे क्योंकि लगातार स्कूल से मैसेज आ रहा है फीस जमा करने के लिए, तीसरा माताजी का इलाज बंद करा दें और यह तीनों ही काम केशव बाबू के लिए असंभव से लग रहे हैं, वो बड़े पशोपेश में हैं कि क्या करें क्या न करें, बताते चलें कि ये केशव बाबू वही है जो एक बेहद प्रतिष्ठित विद्यालय में छठी क्लास में पूरे पांचों सेक्शन में तीसरी पोजीशन पाए थे पर कुछ उनका और कुछ देश का दुर्भाग्य कि वह सफल ना हो सके और यह स्थिति उनके सामने आ गई, एक और व्यक्ति हैं, पंकज श्रीवास्तव (काल्पनिक नाम पर व्यक्ति है) पंकज श्रीवास्तव एक सीएनएफ़ कंपनी में काम करते हैं, ₹14000 वेतन है उनका, उनकी कंपनी ने भी उनको मार्च तक का वेतन दिया और अप्रैल से मना कर दिया आजकल कोई पेमेंट आ नहीं रहा लिहाजा हम लोग कोई पेमेंट दे नहीं पाएंगे आप लोग तब तक छुट्टी पर रहिए जब तक स्थितियां ठीक नहीं हो जाए, उनके भी बच्चे शहर के प्रतिष्ठित कान्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं, और माता-पिता दोनों ही रोगी हैं उनके सामने भी यही तीन विकल्प है अब भोजन तो यह दोनों लोग नहीं छोड़ सकते बस दो ही विकल्प बचते हैं या तो बच्चों का नाम कटा दे या फिर माता-पिता का इलाज बंद कर दे, वैसे भी आजकल हर व्यक्ति की केवल तीन आवश्यकतायें हैं भोजन स्कूल की फीस और इलाज, अब भोजन तो वो जैसे तैसे पा ही जा रहा,सारी लड़ाई फीस की है चाहे वो स्कूल की हो या डाक्टर की,
काश मोदी जी ने आज अपने भाषण के दौरान एक निवेदन डॉक्टरों और स्कूल वालों से कर दिया होता कि मेरे डाक्टर और स्कूल वाले बंधुओं आपसे हाथ जोड़कर निवेदन करता हूं कि एक भी बच्चे का नाम स्कूल से फीस के कारण ना काटा जाए और एक भी आदमी का इलाज सिर्फ इसलिए ना हो सके कि उसके पास पैसा नहीं था बस एक साल संभाल दो मेरे भाइयों हमें पूरा यकीन है कि हम इस विपत्ती से बाहर आएँगे, और सब चीजें फिर से अच्छी हो जाएंगे तो आज मोदी जी लाल बहादुर शास्त्री के स्तर के नेता हो गए होते,आज इंसान से देवता हो गए होते, 130 में से सौ करोड़ लोग पूजते उनको,पर अफ़सोस ये हो न सका, ये भी नहीं कर पा रहे तो ऊपर बताए गए चोर बेईमान लोगों की सम्पत्तियाँ ही ज़ब्त कर लेते जिन्होंने दोनों हाथों से लूटा है देश को, फिर शायद बीस लाख करोड़ नहीं बीस करोड़ इकट्ठा हो जाता और फिर देश के करोड़ों व्यक्ति उनके एक इशारे पर जान देने को तैयार हो जाता पर अफसोस यह भी हो ना सका
पर मैं चुप नहीं रह सकता, मैं केवल चुटकुले नहीं बना सकता, इस समय रात के डेढ़ बजे बड़े कष्ट से ये लिख रहा, मैं इस पोस्ट के माध्यम से आप सब से निवेदन करता हूं कि जैसे भी हो इस पोस्ट को जिम्मेदारों, प्रशासनिक अधिकारियों स्कूल वालों और प्रख्यात चिकित्सकों तक पहुंचाए जो आज भी लगातार फीस का मैसेज भेज रहे हैं और इस बेहद बुरे वक्त में भी पाँच छः सौ फीस ले रहे, शायद आपका प्रयास किसी बच्चे का नाम कटने से बचा ले या किसी का इलाज करा के उसकी जान बचा दे, हो सके तो इस आंदोलन रूपी हवन में अपनी आहुति जरुर दीजिए..”
(‘शैलेश त्रिपाठी’ सम्प्रति एलआईसी में विकास अधिकारी हैं और दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, कादम्बिनी, सहित तमाम अख़बारों, पत्र पत्रिकाओं में व्यंग्य लेखन व मंचों पर व्यंग्य कार्यक्रम व तमाम मोटिवेशनल सेमिनार भी करते हैं.)