जब मैं 1996 में एसपी सिटी मुरादाबाद था तो मैं एक मामले में एफआईआर दर्ज करने की बात कह रहा था क्योंकि कोई व्यक्ति खुद को पीड़ित बता कर अपनी एफआईआर लिखवाना चाहता था. मेरे सीनियर एसएसपी मुरादाबाद एफआईआर नहीं चाहते थे, कहीं से कोई दवाब था. मीटिंग में इस पर चर्चा होने लगी. उन्होंने कहा एफआईआर क्यों लिखा जाएगा, मैंने कहा सीआरपीसी में उसका अधिकार है. एसएसपी ने कहा तो क्या यदि मेरे खिलाफ कोई एफआईआर ले कर आएगा तो आप उसे भी लिखेंगे. मेरे मुंह से तुरंत निकला- “क़ानून तो यही कहता है”. मेरी जो समस्या 1996 में थी वही आज 2017 में भी है.
( IPS अमिताभ ठाकुर के फेसबुक वॉल से.)