पहले उन्हें केजरीवाल के नाम से ही चिढ़ रहती थी। उनका ज़िक्र आते ही मुँह कसैला हो जाता था। उन्हें लगता था कि एक टुटपुंजिया उनके साहब को चुनौती देता रहता है।
इसके बाद अब कन्हैया आ गया है। उसके नाम से भी वह उसी तरह चिढते हैं। उसी तरह गरियाते रहते हैं, खोज-खोजकर दोष गिनाते रहते हैं।
लेकिन फिर भी दोनों सरपट आगे बढ़े चले जा रहे हैं। अब खिसियाया आदमी जूता नहीं फेंकेगा या फिंकवाएगा तो क्या करेगा? हाँ, कभी-कभी स्याही भी फेंक देता है-फॉर ए चेंज।
( देश के जाने-माने पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.)