यदि मोदी का मूड बिगड़ा तो चौटाला के बगल वाली बैरक में पहुंच जाएंगे मुलायम…

सौदेबाज मुलायम का कुनबा 26 अक्टूबर 2007 से वाण्टेड है, क़ानूनी रूप में सीबीआई की प्राथमिक रिपोर्ट के बाद 40 दिनों में एफआईआर हो जानी चाहिए थी. चूँकि सीबीआई सत्ता चलाने का टूल बन चुकी है, सो सीबीआई कोर्ट पहुँच गई एफआईआर की परमीशन मांगने। उस वक्त मुलायम के पास 39 सांसदों की ताकत थी। खुली लूट की आजादी में रोड़ा बन रहे वामपंथियों से मनमोहन का गिरोह छुटकारा चाहता था और अपने आकाओं के इशारे पर हरहाल में न्यूक्लियर डील कराने पर आमादा था।

इसी बीच नवम्बर 07 में वामदलों ने सरकार को चेतावनी देकर कहा कि यदि सरकार ने डील की तो समर्थन वापस ले लूंगा। मनमोहन गिरोह के मैनेजरों को मुलायम के डीए केस पर निगाह लग गयी।  यहीं से शुरू हुआ ब्लैकमेलिंग का सिलसिला जो कि 2014 तक जारी रहा। न्यूक्लियर डील हो जाने के बाद मेरे निजी उत्पीड़न का दौर शुरू हुआ। पैसे के आफर दिए गए, सुरक्षा छीन ली गई, जान से मारने की धमकी दी गई। ये सारे दांव कोर्ट में सीबीआई का केस वापसी का हलफनामा दायर कराने के लिए आजमाए गए। सन 2009 के लोकसभा चुनावों में सपा से गठबन्धन कर चुनाव लड़ने का ख़्वाब देखने वाले मनमोहन गिरोह को उस वक्त हताशा हुई जब कोर्ट में केस वापसी का मैंने विरोध किया।

उसी दौरान सीबीआई की डीआईजी के फर्जी हस्ताक्षर वाली रिपोर्ट मीडिया में हेडलाइन बनाकर चलाकर कोर्ट को दबाव में लेने का असफ़ल प्रयास किया गया लेकिन कोई दाव काम नहीं आया और 10 फरवरी 2009 को कोर्ट ने फ़ैसला रिजर्व कर लिया। 2009 के चुनावों से पहले सपा ने गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया। 2009 के लोकसभा चुनावो में उप्र में स्थानीय कारणों से कांग्रेस को 21 सीटों पर सफलता मिली। अब मेरे उत्पीड़न की धार तेज हो चुकी थी। संसद में कट मोशन, जेपीसी, राष्ट्रपति चुनाव सहित जब कोई बड़ा सवाल हुआ, फ़ौरन कोर्ट में केस लिस्ट हुआ और सरकार व मुलायम के वकील एक स्वर में मेरे ऊपर पिल पड़ते थे। एक बार तो एटार्नी जनरल वाहनवती से कोर्ट को पूछना पड़ा कि आप मुलायम के वकील हो या केंद्र सरकार के।

2014 में सत्ता परिवर्तन हुआ। मोदी जी प्रधानमंत्री बने। मुलायम की बांछे खिल गई क्योंकि असल में मुलायम की धोती के नीचे खाकी है। 1977 में जनता पार्टी में संघ के साथ काम कर चुके हैं। 1989 और 2003 में भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अब मोदी वंदना जेल जाने से बचने के लिए कर रहे हैं। यदि मुलायम में हिम्मत है तो मोदी के ख़िलाफ़ एक लफ्ज बोलकर दिखाएं। मुलायम को मालूम है कि कोर्ट ने एफआईआर किये जाने के लिए रोक नहीं लगाई है। यदि मोदी का मूड बिगड़ा तो चौटाला के बगल वाली बैरक में पहुंच जाएंगे मुलायम।

मुलायम को यह भी मालूम है कि जब कोर्ट के निर्देश पर जाँच हो रही है तो कोर्ट ही जेल भेजेगी या केस खत्म करेगी। समर्थन की कीमत वसूल चुके मुलायम मीडिया से भी वसूली कर रहे हैं। भारतीय मीडिया तीन बार केस क्लोज कर चुकी है। एकतरफा बयानों के आधार पर केस का क्लोजर रिपोर्ट चलाने वाली मीडिया को भी मालूम है कि इस प्रकरण में 3 पक्षकार हैं। मुलायम का कुनबा, कोर्ट और याचिका कर्ता, लेकिन दो पक्ष फायदे का सौदा नहीं है। मुलायम के पास सत्ता है, देने के लिए बहुत कुछ है, सो जब मन किया क्लोजर कर दिया। वैसे भी मीडिया के बारे में आम राय बन गई है कि यह सत्ता की चेरी है, भाट वंदना में माहिर है, फील्ड में खपने वाले पत्रकार लाचारी और बेचारगी की स्थिति में हैं।

(जाने माने वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी के एफबी वॉल से.)

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