पतंजलि ने कोरोनिल का परीक्षण मछली पर किया था। पतंजलि ने खुद पाइथोमेडिसिन जर्नल में छपे शोधपत्र में इस बात की जानकारी दी है। जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड की नदियों में पाई जाने वाली जेब्रा फिश पर कोरोनिल का परीक्षण किया गया था। आईएमए उत्तराखंड (IMA Uttarakhand) के सचिव डॉ. अजय खन्ना का दावा है कि नियमानुसार मछली पर परीक्षण की गई दवा, मनुष्यों पर इस्तेमाल नहीं की जा सकती। इसके साथ ही मछली पर भी ठीक ढंग से परीक्षण नहीं किया गया। मछली को कोरोना संक्रमित करने के बाद कोरोनिल दी जानी चाहिए थी। ताकि, पता चले कि उसका वायरस पर कुछ असर हो रहा है या नहीं, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। जर्नल में छपे शोधपत्र में उन्होंने मछली को स्पाइक प्रोटीन देने की बात लिखी है।
डा. खन्ना के मुताबिक यह शोध पूरी तरह गलत है। ऐसे में इसके आधार पर पतंजलि और बाबा रामदेव का कोरोनिल को लेकर कोई भी दावा करना गलत है। दवाओं के परीक्षण की एक मानक प्रक्रिया है। जब उस प्रक्रिया का पालन परीक्षण में किया ही नहीं गया तो कोई भी इस नतीजे पर कैसे पहुंच सकता है कि दवा प्रभावी है।