मुझे शहाबुद्दीन की महानता और महत्ता का इल्म नहीं था. अब हो गया है. मैं सार्वजनिक रूप से उनकी अहमियत और हैसियत को स्वीकार करता हूँ.. सलाम करता हूँ…आपकी हाँ में हाँ मिलाकर खुद को आपकी भीड़ में शामिल करता हूँ …शाहबुद्दीन एक महात्मा हैं, जिनपर दर्जनों मुकदमें ठोक दिए गए … सिवान के तीन भाइयों को हवा ने मारा और इस महान नेता को नामजद कर दिया गया …तीन बेटों की मौत पर उस पिता का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वो रहनुमा सरीखे शहाबुद्दीन पर इल्ज़ाम लगा बैठे ..उन्हें इलाज की ज़रूरत है ताकि वो संतुलित होकर एक रहनुमा की रहनुमाई कबूल करें और अपने बेटों के क़त्ल को ऊपर वाले की कारस्तानी मानकर अपना रुदन बंद करें …जेल से रंगदारी और सुपारी के झूठे इल्जाम लगाने वाले लोग आत्मग्लानि के साथ प्रायश्चित करें कि उन्होंने सिवान के महान को बदनाम करने की साजिश रची है ,जिसकी वजह से उन्हें 11साल सलाखों के पीछे काटना पड़ा ….शहाबुद्दीन को बेगुनाह साबित करने के लिए जो गवाह सबकुछ देखकर भी मुकर गए ,उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि जो उन्होंने देखा/समझा था ,वो उनकी दृष्टि का दोष था , मृगतृष्णा थी . गवाह बनने के अपने गुनाह से प्रायश्चित करने के लिए या तो वो अदालत पहुंचने से पहले गुम हो गए या फिर अपनी भूल को सुधार कर अदालत में आखिरी सच बता दिया कि कैसे शहाबुद्दीन जैसे जनसेवक को फंसा दिया गया.. वो तमाम लोग ,जो उनके खिलाफ लिखते बोलते रहे हैं , भूल सुधार करें और जयकारा जगाएं कि साहब बाहर आए हैं क्योंकि वो देश / काल और परिस्थिति की ज़रूरत हैं ..देखिए न , हजारों लोग जिसके स्वागत में उमड़े हों , सैकड़ों गाड़ियों का काफिला जिसके पीछे हो , इतने तोड़न द्वार सजे हों , जिनकी गाड़ियों का सनसनाता काफिला देखकर टोल नाकों के गेट अपने आप खुल जाते हों .. फेसबुक पर जिनके इतने पैरोकार हों , उन्हें आप गैंगस्टर और अपराधी कैसे कह सकते हैं …नीतीश सरकार को ये जांच करानी चाहिए कि एक जनसेवक पर 39 मुकदमें कैसे लाद दिए गए …उन तमाम पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए ,जिनकी जांच की वजह से कई मामलों में उन्हें निचली अदालतों से सजा हुए और उन पुलिस वालों और सरकारी वकीलों का गांधी मैदान में अभिनन्दन होना चाहिए , जिनकी वजह से एक बेकसूर रिहा होकर सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ सिवान लौटा है …सिवान के इस रॉक स्टार को कोई गैंगस्टर कैसे कह सकता है
और हाँ , मैं अब से साहेब शहाबुद्दीन से लेकर ऐसे हर उस शख्स की बंदगी करना चाहता हूँ , जिन्हें कानून ने बहुत सताया फिर भी वो बरी होकर बाहर निकले …चाहे तो माननीय सूरजभान हों या रामा सिंह . सुनील पांडेय हों या मुन्ना शुक्ला और तो और आदरणीय अतीक अहमद और मुख़्तार अंसारी से लेकर बृजेश सिंह तक मेरा सलाम पहुंचे . हम जैसे कूढ़मगज और कमजर्फ लोगों ने इन्हें अब तक गलत समझा…जनता तो अपने जनसेवक को पहचानती ही है,तभी तो जेल से रिहा होने के इतने तोड़न द्वार सजते हैं , उनके इंतजार में भीड़ की शक्ल में जमा होते हैं .उनकी एक झलक पाने को कोई पेड़ पर चढ़ जाता है तो कोई सेल्फी विथ शहाबुद्दीन के लिए भीड़ में सुराख़ करते हुए उन तक पहुँच जाता है .उनसे लिपट कर अपने मोबाइल के लैंस की जद में उन्हें खींचकर ले आता है .एक सेल्फी पाकर धन्य हो जाता है , और हम हैं कि इन्हें अब तक गलत समझते रहे
अपने तीन बेटों के क़त्ल पर मातम मना रहे चंदा बाबू को भी इस जनसेवक की रहनुमाई कबूल कर अपनी नियति को कोसना चाहिए , न कि साहेब के मिजाज को …और अगर चंदा बाबू आज भी कहें कि वो अपने आरोप पर कायम हों तो शहाबुद्दीन उनपर मानहानि का मुकदमा ठोकें ताकि कोई आदमी अपने बेटों को गवांकर भी मुंह खोलने की गुस्ताखी न करे.
(इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर अंजीत अंजुम के फेसबुक वॉल से.)