समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को आज मेरे सवाल इतने अखरे कि वे एक पत्रकार की औकात और उसकी हैसियत तलाशने में लग गये। लोहिया की विरासत ढोने वाले करोड़ पति लोहियावादी अखिलेश यादव से मैंने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव पर सवाल क्या कर दिया कि वे तमतमा उठे। सवाल अखिलेश की ओर से ही उठा कि-संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट किया जा रहा है। इस पर मैंने सवाल किया कि आप उन संवैधानिक संस्थाओं का नाम बता दें? तथाकथित रूप से नष्ट की जाने वाली संवैधानिक संस्थाओं के नाम तो उन्होंने नहीं बताए लेकिन तुरंत ही मैंने सवाल किया कि उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग को आप संवैधानिक संस्था मानते हैं तो आपके शासनकाल में एक कातिलाना हमले के आरोपी अपराधी अनिल यादव को कैसे उसका अध्यक्ष बना दिया गया जिसको कोर्ट ने बर्खास्त किया वो कैसे अध्यक्ष बना रहा? …बस! अखिलेश यादव का समाजवाद गुस्से से लाल हो गया।
दुख इस बात का है जब अखिलेश यादव सवाल पूछने पर अभद्रता पर उतारू थे उस वक्त किसी भी मीडिया सहयोगी ने उनका विरोध नहीं किया। अब हर नेता चाहता है कि किसी भी पत्रकार की यह हिम्मत न हो कि वह नेता से असहज सवाल करे। ऐसे माहौल में स्वस्थ पत्रकारिता की बात करना ही बेईमानी है और उस पर पूरी प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों का खामोशी ओढे रखना भी उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा करता है। आज मेरे साथ कल चुप रहने वालों के साथ यही होगा..गजब तो यह है तथाकथित पत्रकार संगठन सेलेक्टिव पत्रकारों की आवाज बनते हैं और ज्यादातर मामलों में खामोशी ओढे रखते हैं ये भी दुखदाई ही है।