आज मैं आप सबसे एक बात साझा करना चाहता हूँ। ये इसलिए ज़रूरी है क्योंकि आप में से ही वो दर्शक भी हैं जो हमारा चैनल देखते हैं और हर एक दर्शक हमारे लिए भगवान है। हमारे संस्कार कहते हैं कि भगवान से कोई बात छिपाई नहीं जाती। इसलिए आज बोलना चाहता हूँ। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर बहुत ज़्यादा सक्रिय न होने के बावजूद आज खुलकर कुछ कहने की इच्छा हो रही है। मैं टीवी 9 भारतवर्ष का मैनेजिंग एडिटर हूँ। ये वही चैनल है जिसको आपके प्यार और आपकी चाहत ने टॉप थ्री तक पहुँचा दिया है। पिछले हफ़्ते की टीआरपी में तो हम हिंदी के सभी राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों में दूसरे नंबर पर रहे।
हमारी टीम ने ये उपलब्धि एक साल की जी तोड़ मेहनत की बदौलत हासिल की है लेकिन हमारी मेहनत और हमारे लिए दर्शकों की स्वत:स्फूर्त चाहत पर टीवी न्यूज़ इंडस्ट्री में पहले से स्थापित कुछ स्वयंभू सवाल उठा रहे हैं। सवाल ये उठाए जा रहे हैं कि ऐसा कैसे हो गया? क़तार में नीचे खड़ा एक चैनल कैसे आगे आ गया? प्रश्न पूछने वाले इस इंडस्ट्री के वैसे नामी गिरामी हैं, जिन्हें शायद अपनी हार देखने की आदत नहीं है। इसलिए उन्हें टीवी 9 भारतवर्ष का बढ़ना पहेली लगता है। दोस्तों ये पहेली नहीं प्रामाणिक तथ्य है। टीवी न्यूज़ की रूढ़िवादी जकड़न से आज़ादी, नई सोच का पहला प्लेटफ़ॉर्म, अनाम प्रोड्यूसर्स की कड़ी मेहनत, हर विभाग का एक पाँव पर खड़े रहने का जज़्बा, टीवी 9 परिवार का दृढ़ विश्वास और टीम भावना ने इस नामुमकिन को मुमकिन बनाया है। ये प्रमाण है उस जुनून का जो आसमान में भी सुराख़ करने की हिम्मत देता है।
जब मैंने इस चैनल को ज्वाइन किया तब इसी इंडस्ट्री के स्थापित महानुभाव मेरे लिए आत्मघाती कदम की भविष्यवाणी कर रहे थे। मेरे साथ जुड़ने वालों की बर्बादी का मर्सिया पढ़ रहे थे। तत्कालीन परिस्थितियों और परंपरागत चश्मे से देखें तो शायद ये सच भी होता मगर मेरे लिए यही तो चैलेंज था। नामुमकिन को मुमकिन बनाने का चैलेंज। मजबूरी में नहीं, अपनी मर्ज़ी से ये रास्ता चुना था। मुझे जो सही लगता है वही करता हूँ। ख़ैर, साल भर पहले ये चुनौती लेते वक्त भी आत्मविश्वास था कि इंडस्ट्री के सबसे अच्छे लोगों की टीम साथ आएगी क्योंकि यही कमाई है मेरी। वो आए, ये सोचकर नहीं कि ड्यूटी करनी है, ये ठान कर कि इतिहास रचना है। जो टीम पहले से मौजूद थी, उसका मनोबल बढ़ा, सबने साथ मिलकर चलने का फ़ैसला किया और पहाड़ जैसी कामयाबी हासिल हो गई। अब ये कैसे हुआ, इसके लिए सिर्फ़ इतना ही कहूँगा कि गुमनाम टैलेंट को मंच मिला, आज़ादी मिली, नई लकीर खींची, दिन रात देखे बग़ैर कर्म को प्रधान मान कर डटे रहे, चौबीसों घंटे खुद को झोंक दिया और डंके की चोट पर फ़ैसला उन दर्शकों ने सुनाया जो टीवी न्यूज़ की परंपरागत विधाओं में जकड़े रहने पर मजबूर थे।अब इससे चिढ़ हो सकती है ऐसे लोगों को जो सिंहासन को अपनी जागीर समझते हैं। मगर ये तो मुक़ाबला है। आइए करते हैं।
हार-जीत का फ़ैसला दर्शकों पर छोडते हैं। किसमें कितना है दम, ये तय करने की ज़िम्मेदारी जनता की है। मगर गुज़ारिश है कि ऐसे घिनौने आरोप लगाकर साहसी टीम की मेहनत पर, दर्शकों की चाहत पर सवाल मत उठाइए। क्योंकि मेहनतकश लोगों की आह जल्दी लगती है। सच कहूँ तो हमने कभी ये गौर ही नहीं किया कि आप किस राह पर चल रहे हैं। हमने अपनी राह स्वयं चुनी, वक्त की नब्ज को पहचाना और आगे बढ़ते रहे। जिस दिन हमारे कामयाब रास्ते को देख कर आपने अपना रास्ता बदला और उसी डगर पर चलने को मजबूर हुए. तभी ये प्रमाण मिल गया कि हार किसकी हुई और जीता कौन? बस प्रमाण पत्र मिलना बाक़ी था और जब जनता ने वो भी दे दिया तो इतनी बेचैनी क्यों? संस्थान किसी बड़े नाम का मोहताज नहीं होता, संस्थान हमेशा किसी भी नाम से बड़ा होता है और संस्थान ही किसी नाम को बड़ा बनाता है, इसलिए हमने संस्थान को ही बड़ा बनाया और आप नाम में बड़प्पन तलाश रहे हैं?
ख़ैर व्यक्तिवादी संस्कृति के पोषक इसे शायद नहीं समझ पाएँगे। आगे-पीछे तो लगा रहेगा, रास्ता लंबा है, अभी तो आग़ाज़ हुआ है, दो कदम पीछे, चार कदम आगे, ये सब चलता रहेगा। हम ये दम नहीं भरते कि हम ही सर्वोच्च शिखर के एकमात्र दावेदार हैं। हमारा आकलन दर्शक करते हैं। हमारे कई शो हफ़्तों तक नंबर वन रहे, आज भी हैं, मगर न तो इसका दंभ पाला, न ही डंका पीटा। हम नैतिकता के मानदंडों का पालन करते रहे। फिर क्या क़ुसूर है हमारा? क्या ये कि हमने अपनी मंज़िल खुद बनाई? क्या ये कि हमने न्यूज रूम से गाली संस्कृति को ख़त्म किया, जिसे अपना कर कई पूर्ववर्ती संपादक सम्राट होने का भ्रम पालते रहे?
आपको यक़ीन हो या न हो, मगर शांति और प्यार से भी बेहतर काम हो सकता है, ये देखना हो तो कभी आकर उस शैली को देख लें। अनुशासन की अपेक्षा के साथ आज़ादी और ख़ुशगवार माहौल क्या होता है, ये जान लें। किसी चैनल की बेहतरी में इसका भी योगदान होता है कि आप अपनी टीम को कितना जानते हैं, कैसे पेश आते हैं और आपकी टीम आपके लिए किस हद तक जाने का माद्दा रखती है। पॉज़िटिव एनर्जी से हर अंधकार को ख़त्म करना ही नए मानकों को जन्म देता है और यही हुआ है, इसलिए इस पर आश्चर्य मत करिए।
सारांश ये है कि दूसरों की उपलब्धियों को भी पचाना सीखिए, आत्मसात् करने की आदत डालिए। इतिहास का साक्षी बनिए। वक्त बदल रहा है, सोच बदलिए, बड़ा दिल रखिए, नई पीढ़ी ने आप से बहुत कुछ सीखा है, इसलिए संक्रमित विचारों के प्रदर्शन से बचिए। अब वक्त आ गया है, अपने गुलदस्ते में झांकिए, खुद का मूल्यांकन करिए और शोध करिए हमारे काम पर, हमारी टीम के जज़्बे पर, हमारे जुनून पर, जवाब वहीं निहित है, क्योंकि हमारी प्रतियोगिता स्वयं से है, आपसे नहीं।
(संत प्रसाद देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं और इस समय टीवी 9 भारतवर्ष न्यूज़ चैनल के मैनेजिंग एडीटर हैं।)