प्रधानमंत्री जी,
जम्मू-कश्मीर की सैर पर गये चंद संपादक और बुद्धिजीवी यह साबित करने पर तुले हैं कि मसला पाकिस्तान नहीं बल्कि कश्मीर है. इतिहास और भूगोल की सलाह देने वाले कथित स्टोरी राइटर्स से आपको इससे ज्यादा आपको उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए. भारत का इतिहास साक्षी है कि यह धरती केवल चंद्रगुप्त मौर्य, साम्राट अशोक, पृथ्वीराज चौहान जैसे वीरों की ही जननी नहीं रही बल्कि जयचंद जैसे कंलक भी इसी की कोख से जन्म लेते रहे हैं. मोदी जी, जनता को शुरू से मालूम है कि आप नेहरू नहीं हैं, गांधी भी नहीं हैं. इसीलिए ही जनता ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना है. आपको करोड़ों-करोड़ लोगों ने जाति-धर्म बंधन को तोड़कर जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए चुना है. इसीलिए आपकी एक भी गलती की माफी नहीं होगी. आप आकांक्षाओं के पहाड़ के नीचे हैं. लेकिन इससे आप मुकर नहीं सकते.
प्रधानमंत्री जी, कुछ कथाकार कश्मीर के विलय को दो देशों की संधि बताते हैं. वो जानना ही नहीं चाहते कि कश्मीर भी आजादी के समय भारत के 662 रियासतों में से एक थी. जो गंगा जामुनी तहजीब का एक अहम हिस्सा रही है. भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पहचान है. जिसे भारत या पाकिस्तान में मिलना ही था. राजा हरिसिंह ने सैद्धांतिक रूप से इसे अपनी मंजूरी पाकिस्तान के आक्रमण के समय दे दी थी. असल में कटी-फटी आजादी देने की मंशा के चलते अंग्रेजों ने आजादी के समय प्रावधान रखा था कि रियासतें भारत या पाकिस्तान में विलय कर लें या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखें. आजादी के समय गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने सहयोगियों की मदद से एक एक करके भारतीय परिसंघ में शामिल करा लिया था. सबसे बाद में भोपाल रियासत को शामिल किया गया.
प्रधानमंत्री जी, खास बात यह रही कि भारत राष्ट्र के एकीकरण में धर्म की जगह सभ्यता और संस्कृति को तरजीह दी गई. लेकिन सेक्युलरवादियों को यह बात भी नहीं पचती है. सेक्युलरिज्म की पश्चिमी धारणा कभी भी धर्म के सार्वजनिक पहचान को मान्यता नहीं देती है, धर्म को घर के अंदर की चीज मानी जाती है. लेकिन इन्हीं छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों की बदौलत सेक्युलरिज्म की धारणा भारत में आते-आते अपना दम तोड़ देती है. बिगड़ी परिभाषा में बहुसंख्यक की धार्मिक आस्था को तोड़ा-मरोड़ा जाता है जबकि हिंसक प्रवृत्ति वाले अल्पसंख्यकों को उनकी धार्मिक पहचान को सार्वजनिक तौर पर बनाये रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. हिंसक प्रवृत्तियों से निपटने के लिए वैचारिक और जमीनी धरातल पर वास्तविक संघर्ष दोनों ही करना पड़ेगा, जिसमें सरकार से ज्यादा जनता की भूमिका अहम होगी. ऐसे हालात भारत में ही नहीं हैं, बल्कि ऐसी ही समस्याओं से दो-चार हो रहे चीन और कई पश्चिमी देश इसी दिशा में कड़े कदम उठा रहे हैं. धर्म के सार्वजनिक पहचान को कड़ाई से दबाकर राष्ट्र प्रथम का नारा दिया जा रहा है.
प्रधानमंत्री जी, देश आज अपने तक्षशिला की सलामती मांग रहा है. कश्मीरी पंडित अपनी जड़ों में जाना चाहते हैं. उस कश्मीर में, जो कभी तक्षशिला बनकर पूरे विश्व में महका करती था. जहां पूरे भारतवर्ष से विद्वान आते थे. आज भी लाखों-लाख भारतवासी कश्मीर में बसना चाहते हैं. बर्फ के पहाड़ों पर तपस्या करना चाहते हैं. लेकिन नेहरू काल की भूलों ने कश्मीर को बेगाना सा बना दिया. संकट की घड़ी में सारा देश, जिसका असली प्रतिनिधित्व देश की एक अरब से ज्यादा मध्यमवर्गीय और गरीब जनता करती है, आपके साथ है. देश ने अपने लिए नए युग की कल्पना की, उसका आपको शिल्पकार चुना, सर्वमान्य नेता बनाया. आपका प्रधानमंत्री बनना ही साबित करता है कि लोग कांग्रेसी युग के लिजलिजेपन को त्याग देना चाहते थे.
प्रधानमंत्री जी, पाकिस्तान की करतूतों के चलते जम्मू-कश्मीर में कभी अल्पसंख्यक रहे और अब बहुसंख्यक बन उभरे लोग धार्मिक आधार पर एक और पाकिस्तान बनाने की मांग कर रहे हैं. चंद लोग अपनी सिंधु-हिंदु वाली आदिम पहचान से भी मुंह मोड़ रहे हैं. देश में बिना रीढ़ वाली सरकारों के चलते घाटी से लाखों कश्मीरी पंडितों का पलायन होता रहा. धर्मांतरण होता रहा. इसी विसंगति के चलते आज कश्मीशर का सच अलग नजर आ रहा है. इस प्रक्रिया को उटलने का वक्त आ गया है क्योंकि अभी तक चारित्रिक दोषों से युक्त सरकार के मुखिय़ाओं में इतना दम नहीं रहा कि वो घाटी को कलंकित होने से बचा पाते. राष्ट्र गवाह है कि देशसेवा के लिए आपने पारिवारिक खुशियों को तिलांजलि दे दी. देश ने भी सही मौके पर अपना सही नेता चुना है. जो तमाम विसंगतियों को दूर कर राष्ट्र को एक सूत्र में पिरो सकता है.
प्रधानमंत्री जी, कश्मीर की समस्या की जड़ धार्मिक अलगाववाद में है. जिसे पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद की शह मिल रही है. जो सर्वविदित है. धार्मिक अलगाववाद को अपने ही जयचंदों ने हवा दी. नब्बे दशक से ही कश्मीरी नेताओं के रिश्तेदारों के बदले आतंकी छोड़ने की परंपरा ने समस्या को खाद और पानी देने का काम किया. जिसके चलते केंद्र में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सैयद की बेटी रूबिया को छोड़ने के 13 आतंकी तो सैफुदीन सौज की बेटी नाहिदा सौज के लिए 7 आतंकी और गुलाम नबी आजाद के साले के बदले 21 आतंकी छोड़े गए. नपुंसक सरकारों ने देश को भी अपाहिज बना दिया. मिलीजुली सरकारों की हैसियत और इच्छाशक्ति की कमी ने कोढ़ में खाज का काम किया. रही सही कसर मलाईखोर बुद्धिजीवियों ने मानवता के लबादे को ओढ़ कर अपने लेखों से पूरी कर दी. बिकाऊ कथाकारों की चले तो देश के हर शहर को मानवता और रेफरेंडम के नाम पर देश को साम्प्रदायिक आग में झोंक देंगे.
पैलेट गन पर बवाल मचाने वाले कश्मीरी पंडितों की हत्याओं पर खामोश रहें. यह हत्यायें एक दिन की घटना नहीं थी, ना ही घाटी में सौ दिनों तक चली सामूहिक कत्ल की कहानी. कश्मीरी पंडितों का कत्ल और उनकी औरतों से बलात्कार सालों साल चला. नपुंसक सत्ता हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. पलायन होता रहा. चारित्रिक कमियों से लबरेज सत्ता और कथाकार घाटी की रोमानी स्टोरी छापते और छापवाते रहे. सत्ता से पैसे और भविष्य में सम्मान को आतुर लंपट कथाकर विक्षिप्त कर देने वाली ऐसी विचारधारा के पोषक बन गए, जिसके चलते कभी पाकिस्तान बना था. क्या ये लंपट कथाकार संपूर्ण राष्ट्र को वेदना को सुन रहे हैं? इस समस्या से जल्द से जल्द छुटकारा पाना होगा. जिसे दूर करने के लिए बड़ी सर्जरी की जरूरत है. इसके लिए मोदी जी देशवासी बड़े से बड़े बलिदान के लिए तैयार है. मोदी जी, अब राष्ट्र आपकी ओर देख रहा है…
( प्रसून शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार और कई चैनलों में संपादक पद पर सुशोभित रह चुके हैं)