मैं आरक्षण का विरोधी हूं। जिसे मेरा साथ छोडऩा हो छोड़ जाए। आरक्षण ने समाज का बंटाधार किया है। समाज को बाटा है। मेरा मानना है कि जैसा समाज होगा वैसा ही ज्ञान-विज्ञान होगा। इसलिए बेहतर तो यही होगा कि सरकारी, असरकारी और अर्धसरकारी समस्त प्रकार की नौकरियों, लाभ के पद और व्यापार को भी समाज की जातियों की संख्या के अनुरूप बाट दिया जाए। यानी ‘जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी’। इसके कई लाभ होंगे। मसलन समाज का कलुष नष्ट होगा व समरसता आएगी। और फिर किसी साधू या साध्वी अथवा मौलाना को अपने समुदाय की संख्या बढ़ाने के लिए अधिक बच्चे पैदा करने के लिए जोर नहीं देना होगा। लोग स्वयं ही 14-15 बच्चे पैदा किया करेंगे। हो सकता है कि इस तरह एक दिन जातिवाद स्वत: खत्म हो जाए। आरक्षण को खत्म करो संख्या के आधार पर स्थान दो।
(वरिष्ठ पत्रकार शम्भूनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से.)