दरअसल, अन्ना यह भूल गए थे कि यूपीए शासनकाल में किए गए उनके आंदोलन के पीछे की ताकत किसकी थी। अनुपम खेर, बाबा रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, जनरल वीके सिंह कहां से आए थे ? और आंदोलन के समय रामलीला मैदान में हजारों की भीड़ को भोजन कराने वाले कौन लोग थे ? वे कथित स्वयं सेवक कहां से आए और कहां गायब हो गए ? उस समय अन्ना को पता भी नहीं चला कि वे कब किसी के मोहरा बन गए। अन्ना को वास्तविक स्थिति का अंदाजा होता तो बिना किसी ठोस रणनीति के उम्र के इस पड़ाव में वे अपनी फजीहत कराने पुन: रामलीला मैदान नहीं आते। मागें वही हैं, सीन बदल गया है। कल का हीरो आज मजाक का पात्र बन गया है। अन्ना का यह हस्र दुखी करने वाला है।
(दैनिक जागरण के चीफ रिपोर्टर प्रदीप श्रीवास्तव के एफबी वॉल से.)