विकास का अचानक चले जाना, एक तरह की ऐसी ही निर्मम ‘प्रेशर डेथ’ है..

मीडिया में और खासकर न्यूज़ चैनल में, डेस्क पर समय सीमा का कितना दबाव होता है, ये शायद उस माहौल में दबाव झेल रहे पत्रकार ही बता सकते हैं।
इस जबरदस्त दबाव के अलावा, रात और दिन की बदलती शिफ्ट्स, अनियमित खानपान और नौकरी की अनिश्चितता, ज्यादातर पत्रकारों को एक स्टीरियो टाइप, ‘लाइफस्टाइल-बीमारियों’ में जकड लेती हैं…… 45 साल से भी कम उम्र के मेरे पूर्व सहयोगी विकास सक्सेना का अचानक चले जाना, एक तरह की ऐसी ही निर्मम ‘प्रेशर डेथ’ है। इस मौत के लिए हम किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते लेकिन बढ़ते ‘वर्क प्रेशर’ में पर हमे चिंतन और उससे कुछ हद तक निजात पाने की बेहद ज़रुरत है।
वर्तमान में ज़ी न्यूज़ में काम कर रहे विकास, आज तक न्यूज़ चैनल में, मेरे 13-14 साल के साथी रहे। वे असाइनमेंट डेस्क के अति ऊर्जावान पत्रकार रहे… और ब्रेकिंग न्यूज़ हैंडल करने में उनका जवाब नहीं था। लेकिन कम उम्र में ही उन्हें ब्लड प्रेशर ने घेर लिया। बावूजूद इस लाइफस्टाइल बीमारी की गिरफ्त के , विकास की पेशेवर चुनौतियाँ और व्यस्तता बढ़ती ही गयीं। इन चुनौतियों का उनकी सेहत पर कितना असर पड़ा और उन्होंने उस पर कितना काबू पाया, इस बात का जिक्र अब बिलकुल निरर्थक है।

आज उनकी अंतिम यात्रा के समय मुझे इतना ही पता चला कि कल रात तक वे फिट थे लेकिन आज तड़के जबरदस्त हार्ट अटैक के कारण घर में ही उनकी मौत हो गयी।

विकास, एक बेहद जिंदादिल , हाज़िर जवाब इंसान थे। वे अब नहीं रहे लेकिन उनके जाने के बाद हमे उस दबाव के माहौल , वर्क प्रेशर एनवायरनमेंट , पर विचार करना होगा। और इस विचार को, मुमकिन तौर पर, इस पोस्ट से आगे बढ़ना होगा।
(वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा के एफबी वॉल से.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *