ये निधी यादव हैं. फैकल्टी ऑफ़ एजुकेशन काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बीएड कर रहीं थीं. इनका निधन हो गया. निधी 20 फ़रवरी 2018 को दोपहर के वक्त एटीएम से पैसे निकालने गईं थीं. ये कोई जानलेवा काम नहीं था. लेकिन इस साधारण से रोज़मर्रा के काम में ही निधी की जान चली गई.
दरअसल निधी जब पैसे निकालने जा रहीं थी तब रास्ते में दो आवारा सांड लड़ रहे थे. ये निधी की बदक़िस्मती ही थी कि वो वहां मौजूद थीं. एक सांड निधी की तरफ़ मुड़ गया और उस पर हमला कर दिया. इस हमले में बुरी तरह घायाल निधी को बनारस हिंदू यूनीवर्सिटी के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया. लेकिन उनकी जान नहीं बचाई जा सकी. चार दिन अस्पताल में संघर्ष करने के बाद रविवार को उन्होंने अंतिम सांस ले ली.
निधी की मौत के लिए ज़िम्मेदार कौन है? वो आवारा सांड. वाराणासी नगर निगम. या फिर हमारी आज के दौर की राजनीतिक व्यवस्था? सांड जानवर है. सारा दोष उस पर नहीं डाला जा सकता. बड़ी ज़िम्मेदारी नगर निगम की है जिसका काम सड़कों से आवारा पशुओं को हटाना है.
आजकल सड़कों पर आवारा पशुओं की तादाद कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई है. सभी शहरों के नगर निगमों को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी और रास्तों को सुरक्षित करना होगा. आज निधी की जान गई है. कल कोई और भी हो सकता है.
(सामाजिक कार्यकर्ता प्रियंका राणा के एफबी वॉल से साभार)