‘इमर्जेन्सी’ की याद दिलाने के लिये ‘इमर्जेेन्सी’ जैसा कुछ न कुछ किया जाता रहेगा! NDTV-India के प्रसारण पर एक दिन की रोक लगाने का केंद्र सरकार का फैसला कुछ इसी प्रकार का है। 4 जनवरी,2016 को पठानकोट एयर बेस में सुरक्षा बलों के काउंटर-आपरेशन के कवरेज में राष्ट्रीय़ सुरक्षा से कथित समझौता करते प्रसारण के लिये सरकार ने NDTV-India को दंडित करने का फैसला किया है। जहां तक मुझे याद आ रहा है, सरकार के एक वरिष्ठ पदाधिकारी उस समय तक सुरक्षा बलों के काउंटर आपरेशंस के समापन की बात कह चुके थे। बताया गया है कि सरकार को उस दिन चैनल के 6 मिनट के एक खास प्रसारण पर गहरी आपत्ति है। संभव है, सरकार की आपत्ति में कोई ऐसा पहलू हो, जिसे हम जैसे पत्रकार नहीं समझ पा रहे हों। अगर ऐसा कुछ है तो सरकार उक्त चैनल के संपादक को बुलाकर संवाद कर सकती थी, चेतावनी का नोटिस दे सकती थी। इस प्रक्रिया से वह अन्य चैनलों और संपूर्ण मीडिया को सतर्क और ऐसी गलती नहीं करने के लिए समझा भी सकती थी। लेकिन यहां तो एक दिन का प्रसारण ठप्प करने का फैसला आ गया। सवाल है, उस दिन तो सारे चैनलों ने लगभग उसी तरह का कवेरज किया। ऐसे में सिर्फ एक चैनल को क्यों दंडित किया जा रहा है? जहां तक केबल TV नेटवर्क एक्ट-1994 और अन्य सम्बद्ध सरकारी कानूनों के उल्लंघन का सवाल है, हिन्दी-अंगरेजी के कई चैनल उसके प्रावधानों की धज्जियां उड़ाते रहते हैं। कइयों पर अंध-विश्वास बढ़ाते कार्यक्रमों की झड़ी लगी हुई है। विज्ञापन-प्रसारण के मामले में भी रोजाना उल्लंघन होते हैं? क्या यह सब सरकारी कानून का उल्लंघन नहीं है? सरकार को ऐसे उल्लंघनों पर कोई आपत्ति नहीं! कैसी विडम्बना है, सरकार ने कानून-उल्लंघन के लिये दंडित करने का फैसला भी किया तो हिन्दी के एक अपेक्षाकृत बेहतर और संतुलित समझे जाने वाले चैनल को! ऐसी भी क्या ‘इमर्जेेन्सी’ थी? ज्यादा नाराजगी थी तो एक नोटिस देकर कडी चेतावनी दी जा सकती थी। पर यहां तो प्रसारण रोकने का फैसला आ गया। एक पत्रकार और नागरिक के रूप में मैं इस फैसले को जरूरत से ज्यादा कठोर और अन्यायपूर्ण मानता हूं क्योंकि इसमें किसी एक को चुनकर दंडित करने का शासकीय पूर्वाग्रह दिखता है।
(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल के एफबी वॉल से.)