गरम माहौल में टीवी चैनल फिर नए-नए वीडियो टीआरपी के लिए चला रहे हैं, जो उन्होंने नहीं उतारे, कहीं से आ टपके हैं। जो अपुष्ट हैं, संदिग्ध हैं। जिनमें भीड़ भी है, हवा में गूंजते नारे भी हैं। लेकिन वे नारे कौन लगा रहा है, कहीं कोई एक चेहरा वीडियो में नारे लगाता नहीं दिखाई देता है जिसे चिह्नित और प्रमाणित किया जा सके।
और तो और, खुद चैनल कहते हैं – हम इस वीडियो की सत्यता को नहीं जानते। नहीं जानते तो ऐसे कलुषित वातावरण में दिखा क्यों रहे हो भाई? उन्हें क्यों बदनाम करते हो जिन्हें बदनाम करने का आपका मकसद नहीं, कुछ तत्त्वों का जरूर है। कौन जाने कहीं की भीड़, कहीं के नारे नारे जबरन जोड़ कर आपको न दे दिए गए हों?
हाँ, चैनल के अपने कैमरामैन ने वीडियो उतारा हो तब दुरुस्त, वरना किसी षड्यंत्र के हिस्सा बने लावारिस और संदिग्ध – घोषित रूप से अपुष्ट – वीडियो ऐसे माहौल में अनवरत चला कर नागरिकों को गुमराह करना पत्रकारिता नहीं है? किन्हीं संगठनों या नेताओं का काम हो सकता लोगों की भावनाओं को भड़काना, परंतु हमारा?
(देश के जाने-माने पत्रकार, संपादक ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.)