हमारे रक्षामंत्री भी अजब हैं। पहले गायब रहे, फिर बगलें झांकते रहे। अब सेना के सामने ‘निजी राय’ व्यक्त करते हैं कि बदला लेंगे, कहाँ-कैसे-कब यह हम तय करेंगे।
प्रधानमंत्री ने परिपक्व कूटनीति का रास्ता अपनाया था। संकट की घड़ी में भी उन्होंने धैर्य रखा। मनोहर पर्रिकर, लगता है, कांग्रेस के बहकावे में आ गए। उन्होंने नाहक जुमलेबाजी की शरण ली है, जो भाजपा की शायद अब पहचान बनने लगी है।
(देश के जाने-माने पत्रकार, संपादक ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.)