जय श्रीराम बोल कर किसी को मारना-पीटना या जय श्रीराम बुलवाने के लिए मार-पीट करना एक जघन्य सांप्रदायिक और सामाजिक अपराध ही नहीं, अपनी आस्था की, अपनी परंपरा की और अपनी संस्कृति की हत्या करना है। मानने वालों के लिए श्रीराम सामाजिक मर्यादा के और कानून व्यवस्था के प्रतीक हैं। इसलिए उनके नाम का हिटलर के फ़ासीवादी नारे की तरह प्रयोग करते हुए किसी व्यक्ति की जान ले लेना श्रीराम के आदर्शों की हत्या करना है।
यदि मोदी सरकार और उनके हिंदूवादी समर्थक सच में श्रीराम और उनके आदर्शों में विश्वास करते हैं तो उन्हें ऐसे तत्वों के साथ ऐसी कठोरता से बर्ताव करना चाहिए कि भविष्य में राम के नाम पर इस तरह की विकृत मानसिकता का प्रदर्शन करने के विचार से ही लोग सिहर उठें।
जय श्रीराम के नाम पर हुड़दंग और हत्या पर उतर आने की यह बीमारी गोरक्षा के नाम पर शुरू हुई थी, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता के जय श्रीराम सुनने से बिदक उठने और पुलिस से लाठियाँ भँजवाने से उपजे रोष की आग में प्रबल हुई और अब महामारी की तरह फैलने लगी है। इस पर अंकुश लगाने की ज़रूरत है वरना रामवादी अपने ही विश्वास की हत्या करने में जुट जाएँगे। ऐसी घटनाओं का बचाव करने वाले और इनके ऊल-जलूल स्पष्टीकरण देने वालों को बख़्शा नहीं जाना चाहिए। रामराज में ऐसे विचारों और कृत्यों की कोई जगह नहीं है और न ही इनका इलाज किए बिना सरकार सबका विश्वास जीत सकती है।
(महिला एंकर जीनत सिद्धीकी की एफबी वॉल से. “जीनत सिद्धीकी News18 Uttar Pradesh, Uttrakhand में Anchor/Producer हैं.”)