अभिनन्दन कुमार जैन, जिनकी पहचान जंगल महकमे के भ्रष्टों के खिलाफ ताल ठोंकने वाले बेहद ईमानदार आईएफएस अफसर की थी। तीन दिन पहले ही ये वरिष्ठ अफसर अचानक शाहजहांपुर के तिलहर में एक सड़क दुर्घटना में अपनी जान गंवा बैठता है। प्रशासनिक मशीनरी ने तत्काल इसे सिर्फ हादसा करार देने में पल भर भी न लगाया। लेकिन संदिग्ध परिस्थतियां देखकर परिजनों ने मामले की सीबीआई जांच की मांग कर डाली। उन्होंने इसे साजिशन हत्या ही करार दे दिया। चूंकि श्री एके जैन मेरे लिए भी इस भ्रष्ट नौकरशाही के बीच एक आदर्श की तरह थे इसलिए मैंने खुद बतौर पत्रकार तहकीकात शुरू की। जिसमे कई ऐसे चौकाने वाले सवाल उभरे। जिससे ये सड़क हादसा है मुझे भी सहसा विश्वास नहीं हो रहा। शाहजहांपुर डीएम अमृत त्रिपाठी से मैं भी भलीभांति परिचित हूँ तो मैंने भी घटना वाली रात में ही खुद व्यक्तिगत रूप से उनसे बात की और जैन सर की मौत का सच बाहर लाने में किसी भी तरह की लापरवाही न किये जाने की गुजारिश की। परिजनों संग पुलिस का व्यवहार बेहद अजीब था। लेकिन शाहजहांपुर डीएम ने मुझे भरोसा दिलाया मनीष जांच बेहद गहराई से होगी। मैंने खुद निर्देश दिए हैं। इसलिए ढिलाई का कोई प्रश्न ही नहीं है हालांकि श्री जैन की ईमानदारी और निर्भीकता से खुद डीएम भी प्रभावित दिखे। अब जरा बात उन सवालों के ऊपर की जाए। जिससे ये सड़क हादसा कम साजिशन हत्या अधिक प्रतीत हो रहा है। सबसे पहले बात पंचनामे की हो जो कमोबेश सभी अखबारों में छपा कि परिजनों के आये बिना कर दिया गया और पीएम हाउस पर भी पुलिस का रवैया काफी अजीब रहा। हालांकि ये एक प्रक्रिया है जिसको पुलिस सिर्फ जल्दी से जल्दी खानापूर्ति करके निपटा देती है इसलिए परिजनों के आने का इंतज़ार करना किसी ने मुनासिब नहीं समझा होगा। शव की फ़ोटो करने से भी भाई को डॉक्टर और पुलिस दोनों ही मना कर रहे थे हालांकि दबाव आने के बाद फ़ोटो करने दी गयी। मौके पर मौजूद कोई भारत सिंह(नाम की पुष्टि नहीं) नाम का दरोगा बार बार कुछ भी करने से पहले किसी से फोन पर बात कर रहा था। ऐसा लगा मानो कहीं से कोई दबाव है और सब कुछ जल्दी जल्दी निपटा दिया जाए। खैर इस सवाल पर भी अफसर समझा ले जाएंगे क्योंकि इसमें ज्यादा दम नहीं है। फोन पर दूसरी तरफ कोई पुलिस अफसर भी हो सकते हैं। हां ये जरूर गौर करने लायक बात है कि यूपी के इतने वरिष्ठ आईएफएस अफसर की मौत को इस अंदाज में समझा जा रहा था मानो किसी गांव का कोई कन्हैया सड़क हादसे में मर गया हो। एक छोटे से अफसर की मौत पर अपराइट रहने वाली पुलिस का ये बर्ताव जरूर अजीब सा लगा। वरिष्ठ आईएफएस के परिजनों को मंत्रियों तक से सिफारिश आखिर करानी ही क्यों पड़ी। बात अब कुछ बेहद अहम सवालों की होनी चाहिए जिसके जवाब शायद किसी के पास नहीं है। परिजनों के बताए तथ्यों के आधार पर सबसे पहली बात कि आईएफएस एके जैन का वो आईपैड गायब है जिनसे वो अपना सारा काम करते थे ऐसे में इसी आईपैड में कई घोटालों की अहम जांच रिपोर्ट होने की पूरी संभावना है। हो ये भी सकता है कि उन्होंने फिर कोई नया घोटाला पकड़ लिया हो या महाभ्रष्ट आईएएस संजीव सरन या जंगल महकमे के दागियों से जुड़ी कोई अहम जानकारी इसमें ही हो। इस आईपैड के गायब होने की जानकारी परिजनों के पास है उनकी पत्नी बीनू जैन ने भी बताया कि अभी नोएडा के घर और गाड़ी में नहीं मिला है एक बार लखनऊ के घर मे भी देख लेंगे। ख़ैर बारी अब श्री जैन के दोनों फोन की है। मोबाइल जांच एजेंसियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण सुराग होता है। समझदार व्यक्ति अपने मोबाइल में कोड लगाकर रखता है। इस मामले में जैन सर भी सख्त थे और अपने दोनों मोबाइल में फिंगर लॉक लगा रखा था जो सिर्फ अंगूठे के निशान से ही खुलता था। लेकिन हादसे के बाद उनका फोन अनलॉक था। एक बार ये भी मान ले कि अगर वो तत्काल बेहोश नहीं हुए थे और फोन उन्होंने ही खोला था तब भी दोनों फोन का अनलॉक रहना बेहद रहस्मयपूर्ण है। ऐसे में संभावना है कि उनके अंगूठे के जरिये किसी ने फोन को खोलकर उससे जरूरी फाइल्स को डिलीट तो नहीं किया। खुद परिजन भी इस तथ्य पर बेहद हैरान हैं। खैर पुलिस ने श्री जैन की गाड़ी को हटाने में जो तेजी दिखाई वो भी संदेह के घेरे में है क्योंकि क्रेटा गाड़ी को थाने में भी नहीं खड़ा किया। जबकि पुलिस तो दोपहिया तक थाने में महीनों खड़ी रखती है गाड़ी को 10 किमी से भी आगे खड़ी किया जाना बेहद चौकानें वाला था। जबकि परिजनों को पहले गाड़ी थाने में खड़ा किया जाना बताया गया था। सिर्फ यही नहीं सबसे चौकाने वाला बयान तो उस निजी ड्राइवर नाज़िम का है जो ऐसी बातें कर रहा जिस पर सहसा किसी को भी विश्वास न हो। नाज़िम का कहना है कि वो अपने घायल साहब को एम्बुलेन्स में लेकर तीन अस्पतालों के चक्कर काटता रहा। लेकिन एक भी अस्पताल ने पुलिस केस का हवाला देते हुए भर्ती नहीं किया। जबकि एक अस्पताल ने घायल निजी अर्दली(रसोइया ही समझें) को भर्ती कर लिया। ऐसे में नाज़िम ने 100 नम्बर डायल करके पुलिस की कोई मदद क्यों नही ली। बेहद चौकानें वाला तथ्य है, जबकि श्री जैन बेहद वन महकमे के वरिष्ठ अफसर थे अस्पताल तुरन्त भर्ती कर सकता था।मना करने का सवाल ही नहीं पैदा होता। फिर भी अगर ड्राइवर की बात पर यकीन कर ले तो आखिर उसने पुलिस को क्यों नहीं बुलाया। इसका भी कोई जवाब नहीं है।जब उनकी मौत हो गयी पुलिस तब आयी। श्री एके जैन अर्दली कम रसोइया को लेने बरेली गए उनके रसोइया ने आधी रात या सुबह उन्हें चाय पिलाई। इस पर भी बार बार बयान बदले जा रहे। ये भी खटक रहा है परिजनों को अंदेशा है कि कहीं उसके बाद ये बेहोश तो नहीं हुए क्योंकि ये नोएडा से रात करीब 11.30 बजे चले थे और शाहजहांपुर पहुंचने के समय मे करीब डेढ़ घण्टे का अंतर क्यों आ रहा है आखिर ये डेढ घण्टे देर क्यों हुई। मतलब दाल में जरूर कुछ काला हो सकता है। रास्ते मे कोई भी बाहरी शख्स गाड़ी में बैठकर अनहोनी को अंजाम दे सकता है। सिर्फ यही नहीं नाज़िम बार बार गाड़ी के पलटने की बात कर रहा जबकि जहां घटना हुई वहां सामने स्थित स्वागत ढाबे के लोग गाड़ी के यू टर्न की बात बता रहे। मतलब गाड़ी पलटी नही, क्योंकि पलटने पर नाज़िम के भी चोट आनी तय थी। लेकिन इतने बड़े ऐक्सिडेंट के बावजूद वो सुरक्षित है और एयर बैग खुलने की दुहाई दे रहा है। महज चार या पांच महीने पहले ही श्री एके जैन के साथ ड्राइवर नाज़िम जुड़ा था।ऐसे में उसके बयानों में लगातार विरोधाभास होना किसी गम्भीर साज़िश की ओर ही इशारा कर रहा है। आईएफएस श्री जैन के भाई व पुत्री करीब ढाई बजे शाहजहांपुर पीएम हाउस पहुंच गए थे फिर भी नाज़िम ने उन्हें अपने साहब की अंगूठी, लखनऊ के फ्लैट की चाबी और आईकार्ड तक नहीं दिया। घण्टों बाद जब उनके भाई ने एएसपी दिनेश त्रिपाठी के आने पर उसकी गिरफ्तारी की बात कही तब ये सामान ड्राइवर ने खुद ब खुद अचानक ही दे दिया। ये बात भी आंखों में चुभ रही है। शक की सुई यहीं नहीं रुकी बल्कि दिवंगत श्री जैन की सोने की मंहगी चेन और बटुए से काफी रुपये भी गायब हैं। ऐसे में आखिर ये कौन गायब कर सकता है। सबसे संदेहास्पद तो एके जैन की तमाम चोटें हैं जिनमे सबसे प्रमुख माथे के बीचों बीच गहरा घाव है जो बेहद रहस्यपूर्ण है क्योंकि ऐक्सिडेंट के बाद पीछे बैठे श्री जैन के माथे के बिल्कुल बीच मे लंबा साढ़े चार इंच का जो घाव है वो लगा किस्से। ये एक पहेली ज्यादा बन रहा है गाड़ी को पीछे से कोई नुकसान भी नहीं हुआ है। ऐसे में पीछे बैठे व्यक्ति के एक साथ करीब 6 गम्भीर चोटें व अन्य हल्की लगना भी गले नहीं उतर रहा है। उन्हें कोई लोहा भी नहीं लगा। माथे का घाव बेहद रहस्यमय है। यही पीएम रिपोर्ट में मौत का कारण भी बना है।ख़ैर ये बेहद अहम है और जांच के बाद ही असल तस्वीर सामने आ सकती है लेकिन अगर एक पल के लिए हत्या की आशंका को सच माना जाये तो ये घाव किसी हथियार से किया ज्यादा प्रतीत होता है। ऐसा खुद उनके परिजनों का मानना है जिनके पास बाकायदा फ़ोटो भी सुरक्षित है। ड्राइवर और रसोइया को पुलिस ने बिना ज्यादा पूछताछ अपने घर जाने दिया। इस पर भी श्री जैन के परिजनों को बेहद आपत्ति है। वहीं पोस्टमार्टम के दौरान प्रशासन ने जो वीडियोग्राफी कराई। उसका पैसा भी शोक संतृप्त परिजनों से ही वसूला जाना बेहद शर्मनाक है। ऐसे में यूपी के वरिष्ठ आईएफएस श्री एके जैन की सड़क हादसे से हुई मौत कटघरे में जरूर आ गयी है। श्री जैन ने हजारों करोड़ के घोटालों का खुलासा किया और सूबे के कई बड़े भ्रष्ट अफसरों और वन माफिया से उनकी दुश्मनी थी। अक्सर वे इसका जिक्र भी करते थे आईएएस संजीव सरन का कच्चा चिट्ठा खोलने के दौरान आगरा में उनकी नेम प्लेट भी तोड़ी गयी थी और उन्हें धमकियां भी मिली। ऐसा खुद उनकी पत्नी बोल रही हैं श्री एके जैन की पत्नी बीनू जैन से भी मैंने विस्तार से बात की तो उन्होंने साफ कहा कि ये सुनियोजित हत्या ही लग रही है ऐसे में सरकार इस मामले की जांच सिर्फ सीबीआई से कराए। अगर न्याय नहीं मिला तो हम सब लखनऊ में न्याय के लिए धरने पर बैठेंगे। श्रीमती जैन ने साफ तौर पर शाहजहांपुर पुलिस के इंस्पेक्टर को कटघरे में खड़ा करते हुए जांच ठीक से न करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने बोला बहुत सारी चीजों में सस्पेंस है उनके तमाम दुश्मन थे। गाड़ी भी नाटकीय ढंग से घटनास्थल से तत्काल हटा दी गयी और पुलिस थाने न जाकर दूर कहीं खड़ी कर दी गयी। मुझे रसोइया और ड्राइवर पर पूरा शक है अगर पुलिस सख्ती करे तो पूरा राज सामने आ जायेगा। उनकी नेम प्लेट तोड़ने में भी कई लोग इन्वॉल्व थे। इसके बाद श्री जैन की पत्नी बेहद भावुक हो उठी और शब्दों ने उनका साथ छोड़ दिया। ख़ैर सिर्फ यही नहीं उनको जान से मारने की धमकियां लगातार मिलती ही रहती थी। मुझसे भी इस तरह का जिक्र उन्होंने संजीव सरन कांड के समय किया था। अब इन गम्भीर सवालों के जवाब अगर शाहजहांपुर पुलिस जांच के दौरान तलाशेगी तभी मौत की असल सच्चाई पर्दे से बाहर आ सकेगी। लेकिन यूपी के ईमानदार अफसरों को न्याय दिलाने में यूपी पुलिस और सरकारी तंत्र का रवैया कुछ खास अच्छा नहीं रहा है। बेहद निर्भीक और ईमानदार आईएफएस एके जैन के साथ हुआ ये सड़क हादसा किसी षड्यंत्र की गवाही जरूर दे रहा है। मैं उन अफसरों को भी जल्द बेनक़ाब करूंगा जो श्री एके जैन को कट्टर दुश्मन मानते थे। इन अफसरों को भी जांच के दायरे में शामिल जरूर किया जाना चाहिए। तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा। एके जैन सर आज आप भले इस दुनिया मे नहीं है लेकिन आपको न्याय दिलाने तक ये जंग जारी रहेगी। इसके लिए चाहे धरने पर बैठना पड़े या जंगल महकमे के भ्रष्ट अफसरों को बेनक़ाब करना पड़े। मैं भी शांत नहीं बैठूंगा। सोशल मीडिया एक विस्तृत मंच है इसलिए आप सभी बुद्धिजीवियों से भी आग्रह है कि ईमानदार नौकरशाहों को संरक्षण और सरकारी सिस्टम को साफ करने की मुहिम चलाइये क्योंकि वर्तमान परिदृश्य को देखकर यही लग रहा है कि अभी नहीं तो कभी नहीं। अगर इसी तरह ईमानदार अफसरों संग घटनाएं होती रही तो देश मे ईमानदार अफसरों का न सिर्फ मनोबल टूटेगा बल्कि सरकारी तंत्र के खिलाफ वे पुरजोर तरीके से अपनी आवाज़ उठाने से पहले सौ बार सोचेंगे कि कहीं उनका हश्र भी बाकियों की तरह न हो जाये…
(लखनऊ के तेज तर्रार युवा पत्रकार मनीष श्रीवास्तव के एफबी वॉल से साभार)