नीतीश कुमार का सत्ता के लिये फर्ज से ऐसा समझौता पहली बार देखा है..

बिहार को ऐसा मैंने पहली बार देखा है. नीतीश कुमार की सरकार को ऐसे माहौल में इतना भोंथरा पहली बार देखा है. मुख्यमंत्री की साख पर इतने बड़े सवाल पहली बार देखा है और सत्ता के लिये फर्ज से ऐसा समझौता भी पहली बार देखा है. नीतीश कुमार ऐसे नेता हैं नहीं. बिहार में कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने और शराबबंदी के जरिए घर-परिवार में सुख-शांति पहुंचाने का बड़ा काम नीतीश कुमार ने किया है, लेकिन न जाने ऐसा क्या है कि उनके पुराने तेवर भोथरे होते जा रहे हैं. जिस कद के नेता वे बिहार की राजनीति में हमेशा के लिए हो सकते थे उसको पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने छोटा किया है.
भागलपुर,मुंगेर,औरंगाबाद और समस्तीपुर जैसे जिले जल रहे हैं. कई जिले ऐसे हैं जहां अंदर- अंदर तनाव पसरा हुआ है. गांव-कस्बों तक लोग सांप्रदायिक सोच का शिकार हुए बैठे हैं. हालात एक जगह काबू में आते हैं कि दूसरी जगह लाठी-पत्थर चलने शुरु हो जाते हैं. रामनवमी का जुलूस पहले भी निकलता रहा है लेकिन इस बार ऐसा क्या है कि माहौल में आग लग गई? भागलपुर हिंसा के आरोपी औऱ केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अरिजीत शाश्वत पटना में रामनवमी के जुलूस में हाथ में तलवार लेकर खुलेआम फेसबुक पर फोटो-वीडियो अपलोड कर रहे थे. अरिजीत के खिलाफ भागलपुर के एक कोर्ट से वारंट जारी है, पुलिस तलाश कर रही है और वो आदमी राजधानी में खुलेआम सबको चुनौती दे रहा है. ये कैसी व्यवस्था है? भागलपुर के पड़ोस में मुंगेर भी तनाव की चपेट में है. हफ्ते भर पहले एक धार्मिक किताब शरारतन जलाई गई और बवाल बढ गया. आज भी हिंसा जारी है. समस्तीपुर के रोसड़ा में सोमवार को दुर्गा विसर्जन-यात्रा गुदड़ी बाजार से गुजर रही थी, तभी किसी ने मूर्ति की तरफ चप्पल फेंक दी. इसके बाद एक हुजूम मस्जिद पर चढ गया और उसपर उसने भगवा झंडा फहरा दिया. तनाव बढा और बढता चला गया. नतीजतन कर्फ्यू लगाना पड़ा और मोबाइल-इंटरनेट सर्विस बंद करनी पड़ी. औरंगाबाद में आगज़नी और हिंसा सबसे ज्यादा हुई है. रविवार को रामनवमी के दिन जुलूस निकला हुआ था. जब वो शहर के जामा मस्जिद इलाके से जा रहा था किसी ने बाइक पर जुलूस में शामिल लोगों पर पत्थर फेंक दिए. फिर बवाल ऐसा बढा कि देखते ही देखते शहर आग और हिंसा के हवाले हो गया, धारा 144 लगानी पड़ी, हालात संभालते संभालते प्रशासन की सांस उखड़ गई. माहौल अब भी खराब है. लेकिन इससे कहीं ज्यादा खतरनात बात ये है कि बिहार का आम आदमी भी इसी लाइन पर बतियाता बंटता दिख रहा है.
घटनाओं की इतनी बारीक चर्चा मैं इसलिए कर रहा हूं ताकि ये समझना आसान हो जाए कि ऐसे बड़े बड़े बवाल कितनी आसानी से पैदा किए जाते हैं. रोजी-रोटी या आम आदमी के हक के लिये आप लोगों को खड़ा करना चाहें तो पसीना छूट जाए, लेकिन एक किताब जला दीजिए, मूर्ति की तरफ चप्पल फेंक दीजिए, जुलूस पर पत्थर फेंक दीजिए और फिर आराम से घर जाकर सो जाइए. लोग रहा-सहा सारा काम कर देंगे. इसमें राजनीति चमक जाती है, ठेकेदारी/ हैसियत साबित हो जाती है और बिना कुछ किए-धरे आगे पीछे चलनेवालों की जमात खड़ी हो जाती है. हिंदू समुदाय में कुछ लोगों को नेतागीरी चमकाने की भूख है और मुसलमानों में कुछ अपनी हैसियत बनाए-बढाए रखने के लिये बेचैन हैं. ऐसे ही दो कौड़ी के मुट्ठी भर नेताओं और उनके चमचों ने शहर के शहर को आग लगा दी है. इन सबकी जमकर बजा दीजिए, सब ठीक हो जाएगा. इसके लिये सत्ता का मोह नहीं, संकल्प वाली सत्ता चाहिए. कुर्सी पर बैठकर सिर्फ कुर्सी का दायित्व उठाया जाता है, कुर्सी की खातिर दायित्वों को दफन नहीं किया जाता. दोनों तरफ कबायली हैं, कुढमगज,बवाली,मतलबी औऱ लंपट. बस गिने चुने. इनके चलते प्रदेश जलेगा? किस सवाल पर बवाल है? इसको समझिए नीतीश जी! आपको पता सब है- बस उनलोगों को पता हो जाए कि ऐसे तो नहीं चलेगा. मेरा भी राज्य है, तकलीफ उतनी ही होती है, चिंता वैसी ही रहती है.

(इंडिया न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत की फेसबुक वाल से साभार)

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