कुछ वर्ष पहले, सत्ता-राजनीति के धुरंधर कुछ बड़े नेताओं के निहित स्वार्थ के चलते यूपी में दलित और पिछड़े समुदाय के बीच अविश्वास की गहरी खाई बन गई थी। इसमें सबसे नकारात्मक भूमिका यूपी के एक खास ‘सियासी खानदान’ की थी। लेकिन तेजी से बदल रही सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति और इन समुदायों के बीच से उभरते नये आंदोलन और नये नेतृत्व ने खाई को पाटना शुरू कर दिया है। संकीर्णता और स्वार्थपरता की दीवारें तोड़ी जा रही हैं। इसमें दलित-बहुजन समाज के पढ़े-लिखे युवाओं, शिक्षकों और अन्य प्रोफेशनल्स का भी बड़ा योगदान है। इस प्रक्रिया का संकेत जंतर-मंतर पर आयोजित 21 मई की दलित रैली के दौरान भी मिला। पिछड़े समुदाय के प्रगतिशील युवा भी सहारनपुर के मुद्दे पर अपना समर्थन जताने रैली स्थल पहुंचे थे। अन्य तरक्कीपसंद धाराओं के लोग भी वहां गये। इस नयी उभरती एकता का स्वागत होना चाहिए। सिर्फ यूपी को ही नहीं, पूरे भारत को आज ऐसी एकता की बहुत जरुरत है!