ख़ामोश, ‘न्यू इंडिया’ बनना जारी है!

बेतहाशा बढ़ती रेल दुर्घटनाएं(पता नहीं इस बार किसकी किसकी ‘साजिश’ है!), अस्पतालों में आक्सीजन और दवा के अभाव में मरते बच्चे, बदहाली और कर्ज में डूबे किसानों की बढ़ती आत्महत्याएं (वे भी रोहित वेमुला की तरह ‘निजी कुंठा’ में अपनी जान ले रहे हैं!), नोटबंदी और जीएसटी से बेहाल निर्माण और बाजार क्षेत्र, तेजी से बढ़ती बेरोजगारी, गौ-रक्षा या लव-जिहाद के नाम पर निजी गिरोहों का आतंक, सरहदों पर तनाव और ‘सृजनात्मकता’ के साथ हो रहे घोटाले, आखिर ये सब अपने मुल्क और जम्हूरियत को कहां ले जा रहे हैं? खबरदार, यह सब ख़ामोशी से देखते जाइये, सन् 2022 नहीं तो सन् 2024 तक सब ठीक हो जायेगा! ‘न्यू इंडिया’ बन जायेगा! इस दरम्यान बस इंतजार कीजिए, आलोचना या असहमति का एक शब्द भी निकाला तो छापेमारी हो जायेगी या नौकरी से बाहर हो जायेंगे या ‘टैक्स-टेरर’ का कहर टूट पड़ेगा! ख़ामोश, ‘न्यू इंडिया’ बनना जारी है!

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल के एफबी वॉल से.)

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