प्रतिस्पर्धा या फर्जी रिपोर्टिंग: टीआरपी बढ़ाने के लिए एक रिपोर्टर ने तो खुद को डेरा समर्थकों से पिट जाने की खबर प्लांट करवा दी

कम्पटीशन का जमाना है। इसमें शक नही कि एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में कोई बुराई भी नही, लेकिन ये होड़ लाखों-करोड़ों दर्शकों के विश्वास के साथ खिलवाड़ करके तो कतई नही होनी चाहिए। गुरमीत राम रहीम सिंह प्रकरण को डेरा के गढ़ सिरसा में कवर करने के दौरान मुझे कुछ ऐसे कड़वे अनुभव मिले सोचा साझा करूँ।

दिल्ली से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूर हरियाणा के सिरसा में मीडिया का जमावड़ा था। ज्यादातर रिपोर्टर दिल्ली से ही गये थे। हर रिपोर्टर बेहतर,और बेहतर करना चाहता है।इसी कम्पटीशन के चलते कुछ रिपोर्टरों को झूठी और अधकचरी खबर को ब्रेकिंग चलाने में शर्म भी नही आती।

सिरसा में ही मौजूद मैं राम रहीम से जुड़े एक विक्टिम के फेमिली का इंटरव्यू के लिए गया था अचानक मेरे पास फोन आता है कि कुछ चैनल चला रहे हैं कि डेरा मुख्यालय में आर्मी घुस गई। ये खबर बड़ी थी। किसी भी रिपोर्टर के लिए और चैनल के लिए भी। डेरा के उस सरहद तक (जहां से मीडिया को आगे जाने की इजाजत नही थी) पहुचने में मेरी हालत क्या थी शायद मेरे से बेहतर और कोई नही समझ सकता था। मौके पर पहुचा तो पता चला कि जिस बैरीकेट के पास मीडिया खड़ी थी उस बैरीकेट के कुछ चंद कदम आर्मी आगे बढ़ी थी लेकिन भाई लोग ब्रेकिंग चलवा दिए कि आर्मी डेरा के मुख्यालय में घुस गयी। इस खबर के परिणाम का अंदाजा प्रशासन और आर्मी को बखूबी था यही वजह है कि एसडीएम परमजीत सिंह चहल ने इस खबर को झूठी करार देने में जरा भी देरी नही लगाई और कैमरे पर बयान दिया कि आर्मी डेरा के अंदर नही गयी है और न ही अंदर जाने की इजाजत दी गयी है। एसडीएम के बाद आर्मी के सीनियर अधिकारियों ने भी बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर डेरा के अंदर आर्मी के प्रवेश की खबर को झूठी बताया। आर्मी और प्रशासन को अंदाजा था कि अगर थोड़ी देर और ये खबर चलती तो हंगामा बढ़ सकता था। डेरा को समर्थकों से खाली कराने की प्रशासन की योजना पर बट्टा लग सकता था। खबर चलाने वालों ने तो खबर चलवा दी लेकिन ये भी नही सोचा कि इसके परिणाम क्या हो सकते हैं।

एक फ़र्जी खबर का वाकया मेरे सामने ही हुआ। सिरसा में आम लोगों की रोज़मर्रा की चीजों को लेकर परेशानी को देखते हुए एक दिन चार घण्टे के लिए प्रशासन ने कर्फ़्यू में ढील दे दी। कर्फ़्यू में ढील सुबह के ग्यारह बजे तक थी और वो बढ़ने वाली भी नही थी लेकिन एक रिपोर्टर ने स्मार्ट बनते हुए ब्रेकिंग चलवा दी कि कर्फ़्यू में दोपहर 2 बजे तक ढील। खबर चलते ही मौके पर मौजूद कई रिपोर्टरों के पास उनके दफ्तर से फोन घनघनाने लगे। लेकिन अगले दो मिनट में ही वहां मौजूद प्रशासन ने एक बार फिर सफाई दी कि 2 बजे तक कर्फ्यू में ढील की खबर फर्जी है।शायद इस खबर के मायने भी फर्जी खबर चलाने वाले रिपोर्टर ने अंदाजा तक नही लगाया। सोचिए 11 बजे के बाद अगर कोई पुलिसवाला किसी आम नागरिक से कहता कि सड़कों पर मत उतरो या दुकानदार से दुकान बंद करने को कहता तो वो पुलिसवाले से भिड़ भी सकता था कि जब फलाना चैनल पर चल रहा है कि कर्फ़्यू में ढील 2 बजे तक है तो घर के अंदर जाने या फिर दुकान बन्द करने के लिए क्यों कह रहे हो।

खुद की टीआरपी बढ़ाने के लिए एक रिपोर्टर ने तो खुद को डेरा समर्थकों से पिट जाने की खबर प्लांट करवा दी।शायद ये सोचकर कि चलो किसी और से नही तो घरवालों और रिश्तेदारों से सहानुभूति मिल ही जाएगी।
नम्बर वन की होड़ में अधकचरी खबर चलवाने का वाकया रोहतक में भी दिखा जब कई रिपोर्टरों ने राम रहीम को दस साल जेल की खबर चलवाई लेकिन थोड़ी देर में पता चला कि जज साहब ने सज़ा 10 साल नही 20 साल दी है। खैर शायद कुछ रिपोर्टरों को राम रहीम पर तरस आ गया होगा इसीलिए वो 20 साल की सजा को 10 साल करने पर तुले थे।

मेरा मानना है कि दो मिनट देर से ही सही अगर आप सही और सटीक खबर देंगे तो लोगों में मीडिया के प्रति विश्वसनीयता बढ़ेगी। अगर अधकचरी और फर्जी खबर चलवाएंगे तो वो रिपोर्टर थोड़ी देर के लिए उस मीडिया संस्थान के लिए हीरो तो बन सकता है लेकिन लोगों की नजर में फर्जी रिपोर्टर का ठप्पा लगने से कोई नही रोक सकता। शायद यही भूल मेरे से यदाकदा हो गयी हो जाती हो लेकिन एक है कि झूठ की जिंदगी ज्यादा लम्बी नही होती। लिफ्ट के सहारे ऊपरी मंजिल पर पहुंचा तो जा सकता है लेकिन कभी-कभी लिफ्ट धोखा भी दे देती है।

( न्यूज18 इंडिया के पत्रकार रवि सिंह के एफबी वॉल से साभार)

aisshpra 5

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *