9 नवम्बर को देश के हर स्वतंत्रचेता चैनल और अख़बार को अपना परदा/पन्ना विरोध में काला छोड़ देना चाहिए…

एक रोज़ पहले ही रामनाथ गोयनका एवार्ड देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हम इमरजेंसी की मीमांसा करते रहें, ताकि देश में कोई ऐसा नेता सामने न आए जो इमरजेंसी जैसा पाप करने की इच्छा भी मन में ला सके।

और भोपाल की संदिग्ध मुठभेड़, दिल्ली में मुख्यमंत्री- उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस उपाध्यक्ष की बार-बार होने वाली हिरासतकारी को भूल जाइए, ताज़ा बुरी ख़बर यह है कि एनडीटीवी-इंडिया पर भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक रोज़ का प्रतिबंध घोषित किया है।

मंत्रालय के आदेश के अनुसार उसकी एक उच्चस्तरीय समिति ने पठानकाट हमले के दौरान उक्त चैनल की रिपोर्टिंग को देश की सुरक्षा के लिए ख़तरे वाली क़रार दिया है। इसलिए सज़ा में चैनल को 9 नवम्बर को एक बजे से अगले रोज़ एक बजे तक चैनल का परदा सूना रखना होगा।

क्या अघोषित इमरजेंसी की पदचाप और मुखर नहीं हो रही? मुझे आशंका है कि आने वाले दौर में यह और तल्ख़ होगी अगर इसका एकजुट और विरोध न किया गया। देश में किसी समाचार माध्यम पर ऐसा प्रतिबंध पहले कभी नहीं लगाया गया है।

इसलिए मेरा सुझाव है कि 9 नवम्बर को, जब एनडीटीवी-इंडिया का परदा सरकारी आदेश में निष्क्रिय हो, देश के हर स्वतंत्रचेता चैनल और अख़बार को अपना परदा/पन्ना विरोध में काला छोड़ देना चाहिए।

एडिटर्स गिल्ड, प्रेस क्लब आदि संस्थाओं को उस रोज़ प्रतिरोध के आयोजन करने चाहिए – अगर अपना लोकतंत्र हमें बचा के रखना हो। वरना शासन का शिकंजा एनडीटीवी की जगह आगे अभिव्यक्ति के किसी और माध्यम पर होगा।
(देश के जाने-माने पत्रकार, जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.)

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