वे न तो पत्रकार हैं और न ही इंसान..

टीवी पर बहस में उन्माद भरने वाले रिटायर्ड फौजियों पर गुस्सा मत कीजिए। उनकी दिमाग़ी बनावट ही मरने-मारने वाली होती है। वे इससे आगे सोच ही नहीं पाते।
और ये उनके लिए ज़रूरी भी है क्योंकि अगर वे ऐसे नहीं होंगे तो न तो खुद अच्छे से लड़ सकेंगे, न ही सैनिकों को प्रेरित कर सकेंगे।
गुस्सा उन पर कीजिए, जो उन्हें बुलाते हैं और स्टूडियो को युद्ध का मैदान बनाकर खुद को अति बुद्धिमान और साहसी समझते हैं। वे न तो पत्रकार हैं और न ही इंसान। वे सत्ताधारियों और मुनाफ़ाखोरों के मंदबुद्धि चाकर हैं, इससे अधिक कुछ नहीं।

( देश के जाने-माने टीवी पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.)

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