अगर भारतीय मीडिया इमर्जेंसी की आहट को सचमुच सुन पा रहा है तो कायदे से उन चौबीस घंटों में तमाम न्यूज़ चैनलों को प्रसारण रोक देना चाहिए जिस समय एनडीटीवी पर बैन लगाया गया है और अगले दिन अख़बार भी नहीं निकलने चाहिए।
हालाँकि मीडिया जिस तरह से सरकार की गोद में बैठ चुका है या उससे आतंकित होकर व्यवहार कर रहा है उसे देखते हुए इस तरह के प्रतिरोध की उम्मीद बेमानी लगती है लेकिन अगर वह समझ पाया कि ये हमला केवल एनडीटीवी या, मीडिया पर नहीं बल्कि समूचे लोकतंत्र पर है तो शायद उनका विवेक एवं अंतरात्मा उसे सही राह दिखा देंगे।
( वरिष्ठ टीवी पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.)