कैसी – कैसी आजादी …!!

तारकेश कुमार ओझा। फिर आजादी … आजादी का वह डरावना शोर सचमुच हैरान करने वाला था। समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह कैसी आजादी की मांग है। अभी कुछ महीने पहले ही तो देश की राजधानी में स्थित शिक्षण संस्थान में भी ऐसा ही डरावना शोर उठा था। जिस पर खासा राजनैतिक हंगामा हुआ था। कहां तो आजादी की सालगिरह से पहले मन मेरी देश की धरती सोना उगले… जैसे गीत सुनने को आतुर था और कहां इस प्रकार तरह – तरह की आजादी का कर्णभेदी शोर। एक और नेता ऐसे ही नारे लगा कर बुरे फंसे थे। जनाब ने जोश में आकर विधर्मी नारा लगा दिया था। क्योंकि उन्हें अपने से बड़े कद वाले राजनेता से आजादी चाहिए थी। खैर उन्होंने माफी मांग ली। अब राजनेता बन चुकी एक पूर्व अभिनेत्री ने आजादी पर बड़ी मजेदार टिप्पणी की। उनकी राय थी… स्वतंत्रता से जीवन जीने की जो आजादी मेरी मां ने मुझे दी… वह मैं अपनी बेटियों को नहीं दे सकी। आजाद ख्यालों के लिए जाने जानी वाली एक और अभिनेत्री ने अपने नवजात बच्चे के साथ अपना फोटो सोशल साइट्स पर शेयर किया, जो इन दिनों बूढ़े हो चुके अभिनेता की पांचवीं पत्नी बन कर विदेशों में छुट्टियां मना रही है। खैर राजनैतिक घात – प्रतिघात व देश के विभिन्न भागों के बाढ़ की चपेट में रहने के दौरान ही बिल्कुल विपरीत खेमे में जा चुके नेताजी का पुराना बयान सुनाया जा रहा था, जिसमें वे कह रहे थे… कौन कहता है कुछ नहीं बदला… जिनके लिए बदलना था , बदल गया… । लेकिन बदली परिस्थितियों में शायद यही बात खुद उन पर लागू होती नजर आ रही थी। कहने का मतलब यह कि चीजें बदलती रहती है , बस देखने का नजरिया होना चाहिए। मेरे क्षेत्र के एक जनप्रतिनिधि जब चुनाव में खड़े हुए थे तो उनके मोबाइल का कॉलर टयून था… मेरा देश बदल रहा है…। वे चुनाव जीत गए, लेकिन उनका कॉलर टयून नहीं बदला। बदला तो बस इतना कि माननीय बनने से पहले वे फोन रिसीव करते थे। लेकिन जीतने के बाद अव्वल तो उनका फोन  बस देशभक्ति  गाने ही सुनाता रहता है, कभी फोन रिसीव भी होता है तो दूसरी तरफ उनके कारिंदे मिलते हैं जो बड़ी बेरुखी से बताते हैं कि माननीय बैठक में व्यस्त हैं… बाद में फोन  कीजिए। लोग विकास का रोना रहते हैं। लेकिन कितना कुछ विकास तो हो रहा है, उसकी तरफ किसी की नजर नहीं जाती। अब देखिए क्रिकेट में हमारी महिला टीम भी उसी तरह कमाल दिखाने लगी है जैसा पहले पुरुष टीम किया करती थी। महिला खिलाड़ियों पर भी धन की खूब बारिश हो रही है। सचिन और धौनी का महिला वर्जन तैयार करने को आतुर बाजार हिलोरे मार रहा है। उन पर एक से एक महंगे उपहार न्यौछावर किए जा रहे हैं। महिला खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने देश से न जाने कितने सेलीब्रेटीज सात समंदर पार खेल मैदान पहुंच गए। एक से बढ़ कर एक उम्दा तस्वीरें स्वनामधन्य हस्तियों ने सोशल साइट्स पर शेयर किए। देशभक्ति का इससे बड़ा दृष्टांत और क्या हो सकता है। यह सब देख मुझे उन महापुरुष की याद ताजा हो आई जिन्होंने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान पर ट्वीट किया था कि उन्होंने… जीवन में कभी बेटा – बेटी में फर्क नहीं किया। मरने के बाद वे अपने जीवन भर की कमाई फकत चंद सौ करोड़ रुपए बेटा – बेटी के  बीच बराबर बांटने वाले हैं। कितनी महान सोच है। लोग बेवजह बेटा – बेटी के बीच भेदभाव का रोना रोता रहते हैं। ऐसे ही न जाने कितने सेलीब्रिटीज ऐसे रहे जो सरकार के किसी विवादास्पद कदम पर तत्काल ट्वीट कर प्रतिक्रिया देने लगते हैं कि यह देश हित में है। भले ही हाथ में थैला पकड़ कर बाजार जाने की नौबत शायद ही उनके समक्ष कभी आई हो।  एक ही देश में आदमी – आदमी के बीच सोच का कितना अंतर है। कोई टमाटर की कीमतें बढ़ने का रोना रोता है, किसी को बेरोजगारों की चिंता सता रही है। देश के विभिन्न भागों के साथ ही मेरे गृहजनपद में भी बाढ़ की विभीषिका मारक रुप में सामने आई। एक ही जिले में एक प्रखंड को शिकायत है कि किन्हीं कारणों से पड़ोसी प्रखंड को तो हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलने के अभिशाप से आजादी मिल गई. लेकिन उनके प्रखंड को नहीं।  किसी को शिकायत है कि  बाढ़ की विनाशलीला की  चैनलों पर बस झलक दिखलाई जा रही है, वहीं सेलीब्रेटीज के एवार्ड शो का निरंतर व निर्बाध प्रसारण घंटों हो रहा है। खैर… आजादी की सालगिरह नजदीक है। जल्द ही सोशल साइट्स देशभक्ति के प्रमाण और प्रतीकों से पटने वाले हैं। लेकिन वहीं एक वर्ग पहले ही की तरह कमियों का पिटारा लिए बैठा है।

(लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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