अरूण जेटली साहब लक्ष्मण रेखा न्यायपालिका नहीं आप लाँघ रहे हैं…

शायद ये पहला मौक़ा है जब केंद्र के एक शक्तिशाली नेता ने न्यायपलिका को इस तरह से सरे आम धमकाया हो। अरूण जेटली साहब लक्ष्मण रेखा न्यायपालिका नहीं आप लाँघ रहे हैं और ऐसा करके पूरे लोकतंत्र को ध्वस्त करने का काम रहे हैं। आज अगर न्यायपालिका को जगह-जगह दखल देना पड़ रहा है तो उसके लिए विधायिका और कार्यपालिका की नाकामियां तथा बदनीयतें हैं। आप खीझें हुए हैं क्योंकि हर रोज़ अदालत सरकार के गालों पर एक चाँटा रसीद कर रही है और इस तरह आपको मनमानियाँ करने से बरज रही है। मगर आप हैं कि अपने गिरेबाँ में झाँकने के बजाय उसे ही धमका रहे हैं। आपको क्या लगता है देश के लोग आपके इस आचरण से खुश होंगे, ताली बजाएंगे? इस खुशफ़हमी में मत रहिएगा। आम जनता का जो थोड़ा-बहुत यक़ीन व्यवस्था पर बचा हुआ है वह आप जैसे राजनीतिज्ञों की वजह से नहीं न्यायपालिका के कारण है। कृपया खुद को काबू में रखिए, बौखलाहट में इस तरह से पेश आएँगे तो जनता को समझ में आ जाएगा कि आप किस तरह की निरंकुशता चाहते हैं और न्यायपालिका आपसे बर्दाश्त क्यों नहीं हो रही है।
लोकतंत्र में संस्थाएं मुश्किल से बनती हैं और उनकी विश्सनीयता तो और भी मुश्किल से स्थापित होती है। पिछले कुछ दशकों में सरकारों ने अपनी हरकतों से उन्हें लगातार कमज़ोर किया है। अब आप क्या आखिरी कील ठोंकना चाहते हैं?

( देश के जाने-माने पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.)

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