मंजर ऐसा था कि बयां करने को शब्द नही थे..

कुशीनगर में तेरह मासूम बच्चो की लाश और अपने लाल के खोने के गम में बिलखती उस माँ को देखने के बाद तो कलेजा भी पत्थर सा हो गया है…जब वहां के मंजर को कैमरे के सामने बयां कर रहा था तो शब्द नही थे…पिचकी हुई वैन में मासूमो के बस्ते और उसमे रखी रोटी और आलू की भुजिया। एक मासूम के बैग में कॉपी किताबो के साथ मोबाइल वाला खिलौना भी था। करीब पचास फीट की दूरी तक रेलवे ट्रैक पर मासूमो के जूते, बैग बिखड़े पड़े थे….सभी बच्चो के शरीर पर कोई जख्म नही था सिर्फ गर्दन के ऊपर का हिस्सा ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने हथौड़े से कुचल दिया हो। लेकिन इससे भी बुरा हाल इस फाटक के दक्षिण की तरफ बसे पडौरणा गांव का था। अंतिम बार वैन इसी गांव के पांच बच्चो को लेकर निकली थी। जिनमे आठ साल का कामरान और 10 साल का फरहान भी था। दोनो भाई एक साथ घर से निकले थे और एक साथ ही दोनों की लाशें भी घर मे आई। अब्बू सऊदी में कमाने गए हैं घर मे अम्मी और दादाजी हैं। अब दोनों बेटों की लाश देखकर माँ भी जिंदा लाश हो गई है। उसके आंखों के आंसू भी सुख गए हैं। क्या मुआवजा मिला? किसने क्या कहा? किसकी गलती है? इन सारे सवालों से उसे कोई मतलब नही है उसे तो बस वैसा फरिश्ता चाहिए जो उसके बेजान बेटो में जान भर दे। घर के बाहर 78 साल के मो इदरीस अपने कांपते हाथों में दोनों पोतो की तस्वीर लिए हैं। जुबान से अल्फाज नही निकल रहा है। परदेश कमाने गए बेटे को क्या जवाब देंगे? अल्लाह मेरी जान ही ले लेता इन बच्चो को बक्श देता। इस गांव की प्रधान के घर तो कोहराम मचा है। प्रधान के तीन संताने दो बेटा और एक बेटी इस हादसे में अल्लाह के प्यारे हो गए। बच्चो की माँ इस कदर सदमे में है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जब भी होश आता है अपने बच्चो को खोजती है। सूबे के सीएम आये थे मुआवजा की घोषणा किये, रेलवे ने भी दो लाख रुपये मुआवजा की घोषणा की है। लेकिन क्या मुआवजे की रकम से इनके घर का चिराग वापस आ जायेगा। ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग काफी मुश्किल होती है क्योंकि एक रिपोर्टर भी किसी का भाई किसी का बाप होता है। 24 घंटे बीत गए है। घटनास्थल से ढाई सौ किलोमीटर की दूरी पर हूं लेकिन अभी भी वो मंजर आंखो के सामने है।

(Amitabh Ojha BUREAU CHIEF NEWS 24 BIHAR & JHARKHAND के फेसबुक वाल से साभार)

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